31 December 2007

२००८ की मिस भूतनी का खिताब

आज ऑफिस से जल्दी जाना है
इक इन्वीटेशन हाथ आया है
अपने इलाके के मुर्दे ने पुकारा है
न्यू इयर साथ मनाना है,
ऐसा कह मुझे पुकारा है
शमशान घाट मुझे जाना है
लगा लिपस्टिक, सज़ा काजल
मुझे भि चमकना है
चूँकि, चुडेलो का ब्यूटी कांटेस्ट भी
आज रात ओर्गानिस हुआ है
जानती हूँ , कमबख्त चुडेले
राख से तन मन साजेंगी
पर मैं सिर्फ लक्मे लगा ही
अपनी जुल्फों को तेल से निलाहा
रेम्प पर ठुमकुंगी.......
२००८ की मिस भूतनी का खिताब
अबकी बार मुझे ही पाना है


कीर्ती वैद्य

नमकीन

हमारी बातो का सिलसिला कभी रुकता नहीं
कभी मिठास का एहसास नज़र आता नहीं
सोचती हूँ क्यों करती हूँ हर बात फिर भी
शायद,नमकीन की आदत तुम संग अब मुझे भी

कीर्ती वैद्य

28 December 2007

सूखे पात

सहजी कुछ यादें बन सूखे पात
उदास मन को दिलाती कुछ याद
किताब से बिखर सुनाती बात
नमकीन बूंदे समेट नम होती आप
सुर्ख फूलों का रही कभी हिस्सा
अब बस बचे यही दिन रात

कीर्ती वैदया

27 December 2007

खिचडी

सपनो के खिचडी पका
भोर किरनों का दे छोंका
भरी दुपहरी का उबाला
साँझ हवा का मसाला
इंद्रधनुषी रंगो से सज़ा
निहार रही तुम्की रहा

कीर्ती वैद्य

26 December 2007

कया लोगी.........

शायरी छोडो, तुम शायरा बन जाउगी
तों आप घर बसाए, मैं घरवाली बन जाउगी.......

घरवाली बन, मेरा भेजा खा जाउगी
नही, बस आपकी आज़ादी बांधुंगी

अरे , उड़ने दो मुझे बन आजाद पंछी
रोका कब, बस मेरा हाथ थामे चलना

उफ़, तुम पीछा छोड़ने का कया लोगी
बस, रोजाना खामोशी से शायरी सुनो

याही चाहूंगी...और कया.....

कीर्ती वैदया.

24 December 2007

जब, तुम हमसे रुठोगे

कितने अधूरे सपने टूटेंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे
गुनगुनाना मेरा बंधेगा
जब, तुम हमसे कटोगे
तुम तो हर बार मनाते हो
पर जब, तुम हमसे रूठे
हम कया तुम्हे मना पाएंगे..
तुम्हे फिर अपने प्रेम में रंग पाएंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे

कीर्ती वैदया

19 December 2007

क़ैद

कई दिन बाद कमरे में आना हुआ सब सहजा,
जैसे कुछ बदला ही ना
वही कुर्सी व छनी धूप के कण

मंद हवा से उड़ते फैले सूखे पत्ते

धूल चढी हंसती तस्वीरो का रंग
सब धुंधला था,
कुछ शेष था,
गूंजती कानो में पुरानी बाते
क़ैद जो मेरी स्मृति में ना कीसी कमरे में....


कीर्ती वैद्य

18 December 2007

कुछ ऐसे ही...


वो पास कभी बूंदों से भीगा जाये
कभी बरफ बन दिल को जमा जाये
कितनी भी कोशीश दूर जाने की
मेरे ज़हन में खंज़र बन गड़ जाये
कीतने खाब अधूरे आँखों के
तुझे याद कर हरपल छलक जाये

कीर्ती वैद्य........

13 December 2007

जानती हूँ, जवाब.....

इक आख़री चीठा उन्हे आज लिखा है
आर नहीं तो पार होने का संदेसा दिया है

जानती हूँ, जवाब.....

सारे दिए आप बुझा दिए है
अपने दिल को समझा लिया है

जानती हूँ, जवाब.....

तभी तो अपने को जाम में डुबो दिया है
हर लम्हे को आँसुओ से धो दिया है

जानती हूँ, जवाब.....

हर याद को धुएं में उडा दिया है
हर ज़ख्म को दुनिया से छुपा लिया है

जानती हूँ, जवाब.....

अपनी राह को बदल दिया है
अपने वजूद को ही ख़तम कर दिया है

जानती हूँ, जवाब.....

कीर्ती वैद्य

11 December 2007

आँखों का बाँध

न आया करो मेरे पास
मैं क्यों और कौन
कया रखा मेरे पास
चले जाओ यंहा से
बस छाया घुप अँधेरा
न कोई बस्ती न हस्ती
न कोई किनारा यंहा
मत आया करो, भर
नैनो का कटोरा
नहीं मिलती प्रेम भीख
मुझे बहलाने से भी
चले जाओ वर्ना
टूट न जाये मेरे
आँखों का बाँध

कीर्ती वैद्य

अलविदा

हर पल कटे तेरा नाम लेके
दिल नाचे तेरी बात सुनके
पर अब न चलेंगी हवाए ऐसे
न रहेंगी मुलाकाते अब वैसी
कह दिया अब हमने तुमको
अलविदा अपनी धडकनों से भी...

कीर्ती वैद्य

7 December 2007

पहचान

मेरी तुमसे और तुमसे मेरी
पहचान कया है ?

किस रिश्ते को
दोनों दूर होकर भी
निभाते है?

धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है

मेरे-तेरे बीच बस
इक मन का तार है..

कीर्ती वैद्य

रिश्ते

सुना था, रिश्ते अजीब होते है
कुछ उलझे कुछ नासम्झे
कभी बनते कभी बंटते
कभी इस डाल कभी
उस डाल झूलते रिश्ते
मैं इक बेपरवाह
कब यह समझी
प्यार के डोर में बंधी
उड़ती रही बन हवा
सोचा कब...
कट जाउंगी इस तरह
उलझ रह जाउंगी
रिश्तो के जाल में इस तरह

कीर्ती वैद्य

6 December 2007

निशान

गीली रेत पे पायो के निशान
हाँ, मिट जायंगे,
सागर की इक लहर के संग
पर उन चिह्नों का क्या?
जो दिल पे छाए, बन अंधेर साये
नही मिटते अशरुओ के संग
ओर गहरे हो, ड़सते सारी रात
क्या है कोई ऐसा सागर
जो मिटा दे ये निशान...


कीर्ती वैद्य....

5 December 2007

"बदला इंसान"

सच के तस्वीर जो बालपन में रही
इक सचाई, मासूम चेहरे पे छायी
खा गया उसे ज़िन्दगी का ज़हर
बन गया इंसान झूठ का पहाड़
कितने भी हंसी के मोखोटे लगाये
दिख रहा बदल गया इंसान...

कीर्ती वैद्य...

मेरी पहली प्रकाशित कविता























4 December 2007

कहानियो का संसार

कहानियो का अंधाधुंध संसार
डूबता उनमे एकाध बेकरार
बस समझे वही इसका अधार
कितना विशाल सरोबार
लगा लो डुबकी एक बार
जान लोगे क्या यह संसार

कीर्ती वैद्य.....

30 November 2007

अपने प्यार की रस्म

बैठे रहो मेरे पास
ना जाओ कंही आज
इन आखरी पलो का साथ
तुम्हारी सांसो का एहसास
जी लेने दो अपना यह प्यार
फिर बिखर जायगी,इक काली रात
ना छोडो मेरा हाथ
कुछ पल बाद आप छुट जाएगा साथ
बह जाने दो अपने ज़सबातो को
फिर कौन सुनेगा, मेरे जाने के बाद
ऐसे ना छुपाओ अपनी भीगी पालकी
ना पौछेंगा कोई, मेरे बाद
देखो उस चाँद को, वो सब जानता है
कैसे हममे जुदा होते, तक रहा है
जब आयेगी तुम्हे मेरी याद
तुम भी ऐसे ही चाँद को तकना
मैं काले अम्बर पर भागती आऊंगी
हवा बन तुमसे लिपट जाउंगी
अपने प्यार की रस्म मरकर भी निभाउंगी...................

कीर्ती वैदया...

ज़िंदगी का इक दिन

इक अनछुआ पहलू पास रहे
आँख मिचते अक्स में बदले
अन्बुझे सवालो का अंबार लगा
जाने कंहा धुयां हो जाए
क्या उनके जवाब
उनमे ही मन घुल जाए
अपनी ही परछाइयो से
आप ही डर जाए
ज़िंदगी का इक दिन
कुछ ऐसे ही बीत जाए...


कीर्ती वैदया...

29 November 2007

फिर पीयेंगे

सुबह - सुबह
दोस्त का फ़ोन
क्या मुसीबत है
अभी क्या काम
हम तों शाम
को मिलते है
क्या इसका नशा
अभी उतरा नही?
हाँ, बोलो....

सुनो मेरी बात ,
बुरा मनाना
अपनी दोस्ती
पे आंच लाना
सारी रात
सो पाया
इक शादीशुदा,
बच्ची का बाप
फीर भी जाने
क्यों तुमसे
दिल लगा बैठा
इक दोस्त से
बढ तुम्हे
अपनी प्रेमीका
मान बैठा
हो सके तों
माफ़ी देना.....

अरे, ये क्या
कहते हो
मेरे दिल मैं
तों ऐसा
कुछ नही
छोडो फालतू
की बाते
शाम को
संग बैठ
फिर पीयेंगे
जाम.........

कीर्ती वैद्या

28 November 2007

भीगे नैन अब........

माँगा था 'रब' से
मिला न कभी तब
आस भी छुटी सब
तक-तक हारी जब
बुझ गए दीप
तों खडे अब
भीगे नैन अब........

कीर्ती वैदया.....

एहसास क्यूँ रहे.....

हरी झील आँखों का रंग
क्यूँ रोज़ करे तंग

सुर्ख होंठो की लाली
क्यूँ जलाती रात भर

खनकती चुडियो का रंग
बरसाए नैन सारी रैन

हाँ, वो अब साथ नही
फिर, एहसास क्यूँ रहे.....

कीर्ती वैदया

मेरा ही रहे

एक चाँद की सहेली
मेरी भी सहेली
बड़ी इठ्लाये पीया पे
छमक-छमक देखो
ज़लाये-चिडाये
इक दिन पूछा
ऐसा कया उसमे?
लगी इतरा पिरोने
तारीफों की लड़ी
सुन सब, मैंने
अंगूठा दिखलाया
अरी, बड़ा दूर
वो तुझ से
न जाने कितनों
का सजन, तेरा सनम
भला मेरा 'माही'
तेरे चाँद से सही
कितने पास मेरे
दिन -रात, हर
पल संग मेरे
कोई नहीं देखे
मेरे सिवा उसे
बस 'माही' मेरा
मेरा ही रहे
हमेशा के लीए

किर्ती वैदया............

रोज़ बहाना बन

हाँ, तुम रोज़ याद आते हो
आँख खुले पास खडे होते हो
सात समुंदर पार गए हो
फीर भी, मुझे याद रखते हो
सुनु, क्यों नहीं सोते तुम
जब सूरज नीकले यहॉ
तुम रात अपनी क्यों जलाते
सारी रात जग बात करो तब
जब रात पसरे मेरे यहाँ
सपनो में चले आते हो तब
'कीरू' को इतना क्यों चहाते हो
उसे क्यों इतना सताते हों
जब रहना ही अलग हमे
तो क्यों रोज़ बहाना बन
मिलने भागे आते हों........

कीर्ती वैदया...

27 November 2007

प्यार कया चीज

प्यार कया चीज़?
कभी हंसाये
कभी रुलाये
मीयां, पर तुमहारा
यहाँ कया काम?
ये कोई बाज़ार
बीके यंहा प्यार
मोल-भाव में तोल
करो अपमान
रहने दो पाक.

कीर्ती वैदया....

नन्हा सपना

आँख का अंधेर गलियारा
इक रोता नन्हा सपना
सूर्ये कीरण छुए
रात चांदनी
हंसा पाए
कई दीन का भूखा
सुस्त चाल लीए
खामोश धड़कन
भी रो जाए
दस्तक सुन, आस लीए
इक सांस में, हंस जाये
पा, फीर मुरझाये
गुमनाम, फीर
जीए
चला जाये.....

कीर्ती वैदया..

याद है, तुमहें......


जाड की बेरंगी शाम
दौडते शहर की सड़क
चुपी की चादर ओढ
घंटो मेरा इंतज़ार

याद है, तुमहें......

मोल-तोल के पीछे
ठेलेवाले से बहस
मेरे हंस जाने पर
आप ही झेंपना

याद है, तुमहें......

वो शाम बीते
कई बरस होए
स्मृतीपटल के
चीत्र, शेष अब

हाँ, अब कंहा याद, तुमहें......

मैं रही
ये भी होंगे
शेष कभी..

कीर्ती वैदया..

ऐसा कोई रंग है?

कैसा रंग चिहए ?
पुछा जब रंगरेज ने...

खो गयी खड़ी-खड़ी
बीसरी फीकी यादो में
काश, रंग पाती
अपनी बेरंगी यादो को
फीर एक बार खील
चहक नाच पाती
बाबुल के अंगना

सुनो रंगरेज..
ऐसा कोई रंग है ?

कीर्ती वैदया......

26 November 2007

बादलों के पार

बादलों के पार
इक ओर जहां
लेकर जाना, तुझे
अपने संग वहाँ
छुए रौशनी,
जलाये अब,
देखे दुनीया,
सुनाये अब,
बस बाते हो,
अपने दील की
कुछ राते हो
अपने सुकून की.....

कीरती वैधया

15 November 2007

PHOTO OF SHAYAR FAMILY.....GETTOGETHER





SHRADHA & MEEEEE..........KASH ASE HE HUM SAB MILTEY RAHEY AUR APNI KAVITAYE BANTTEY REHEY............EK YADGAAR DIN JO HUM SAB NEY MILKAR SAATH BEETAYA....

2 November 2007

यह भी ज़िंदगी ही है...............




खाली रंगो से भी रंगीन हो जाती है ज़िंदगी
नकली मोखोटो में से भी हंस जाती है ज़िंदगी

उन एहसासों का क्या जो खोये दुनीया की भीड़ में
म्रीग मरीचीका पयास का क्या जो भटके इस भीड़ में

आंखो की हजार चाहते, चंद सीको से जगती कीसमते
मद में चूर उड़ता धुयॉ रात भर टकराते जाम के कांच

पर उनका क्या जो ढ़ूंढ़े बस बेमोल प्यार के दो मीठे बोल
बीस्री अपनी ही यादो को भीगोये अपनी ही बूंदों से


कीर्ती वैदया............................................

25 October 2007

Ashko mein......

Ashko mein doobi raat
Roz tujhey karey yaad

Tuttey sittaro sey karey swaal
Kab ayega puchey apni baat


Kabhi ise karwat to kabhi use karwat
Tera aks dhundhti badnaseeb ankheey........Its me keerti

15 October 2007

TUJHEY DHUNDTI HAI

Roz meri ye ankhey, teri ankhoo mein
Vo pehalye jaisa meetha payar dundhti hai

Khamosh sey mohabaat ke vo zasbaat
AAj bhi tere dil mein dhundhti hai

Tere Hatho ka narm apna sa sparsh
Teri bahoo mein aa aaj bhi dhundti hai

Tere sang gujrey barsaat key vo lamhey
Aaj bhi barsat mein bheeg, tujhey dhundti hai.............

Its me Keerti Vaidya

12 October 2007

MERE SAPNO KA BHARAT

SAB SOYE PET BHAR NEEND
APNEI SABKI CHAT PAYARI HO
MILEY SABKO SIKSHA EK SAMAN
NAR-MARI KA NA BHED HO
KAAM KAREY SAB MIL EK
NA HO KOI RAJA NA KOI RANK
ROZ BANEY ID-DIWALI
NA HO KURSI KI KHEENCH TAAN
ASA HE HO "MERE SAPNO KA BHARAT"

11 October 2007

KYUN DIL KEH REHA ......

KYUN DIL KEH REHA HAI KI TUMSEY HE BAAT KARU
SIRF AAJ TERE HE NAAM KA JAAP KARU
DAAMAN BHAR GAYA HAI TERE PAYAR SEY
ANKHEY NAAM HAI TERE ISE EHSAAS SEY
CHUPA LO BAS AB APNEY SEENEY MEIN
JEE LANEY DO BAS AB APNI BAHOO MEIN
BHUL JANEY DO SAREY GUM ISE JAHAN KEY
DOOB JANEY DO MUJHEY APNEY NASHEY MEIN........ITS ME KEERTI

10 October 2007

Kyun

Kyun yun roz takrra jatey ho
Kabhi raha chaley pukartey ho
Kabhi mandir ke pass kadhey hotey ho
Khamoshi ko udhey bhi kuch bol jatey ho
Kyun yun tukar-tukar nihartey ho
Kya raaz chupa rakhey ho..................its me keerti

9 October 2007

na janey kab sab kho gaya

Na janey kab ankho ke sab moti sukh gaye
Ghaney kaley megha ban asma mein cha gaye

Chehketi koyal se boli kab muk ho gayi
Andheri se kaal kothri se chupi cha gaye

Udti rangeen titliyo se chuhalbul sab band ho gayi
Tanhayio ke alam me ek koney ja beth gaye

Inderdhunshi rango ka banaya payara gharonda tut gaya
Zindagi ke bereham bhav mein na janey kab sab kho gaya...


Its me Keerti

8 October 2007

Bheegi the mein uskey payar mein

Bheegi the mein uskey payar mein
Jo aap bheega tha kisi aur ke yaad mein
Kitna hansta tha vo mujhey
Jo aap rota tha kisi ar ke payar mein
Zindagi ka arth samjhata tha
Jo aap sab kho chuka tha ise jahan mein
Haath pakad jisney jeena seekhya
Jo aap jeena bhula tha kisi aur ke saath na honey mein

Its me keerti

EK ANJAAN AJNABI

HAAN, EK ANJAAN AJNABI KO JANATI HUN
BIN DEKHEY HE USSEY PECHANTI HUN
BARISH KE NAM MEETHI BOONDO SA VO
BHORE KE PEHALI CHALKI KIRNO SA VO
GUNGUNATA HAI GEET BAN MERE HONTHO PEY
DHADKHTA HAI DIL BAN MERE SANSO PEY
KABHI CHU JATA HAI BAN PAWAN MERE MAAN KO
KABHI HANSA JATA HAI BAN SHABNAM MERE DIL KO
KABHI NACHTI HUN USKEY PAYAR MEIN BAN RADHA
KABHI GAATI HUN USKEY EHSAAS MEIN BAN MEERA

ITS ME KEERTI

28 September 2007

Tu ley chal mere maan


Chaltey Chaltey yahan aa, Van shrinkhla samapat hoti
Ghehrey neele amber aur Hari bhari bhumi ko
Apney mein samatey dikhata , Dur pahado mein kshitij
Kal Kal behati jati, Lehrati balkhati barfili neer Nadi
Ek shan tham jata, Sun madhur bansi dhun
chau aur kheeley satrangi jangli phool, kachey pakey meethey fall
Hai asi koi jagah , Tu ley chal mere maan............

Its me Keerti

27 September 2007

KARREB KANHAA

Kitney bhi dil ke darwaze bandh kar lo
Sou baar chahyee yeh ankhey bandh kar lo
Faad dalo unne puraney afsanno ko
Dhuye mein uda do chahyee beeti yaado ko
Phir bhi din ka ek nanha lamha, roz
Chupkey se samney aa, laye teri yaad, roz
Aankho ko chalkha , bhar thandi ahaa
Yaad dila jaye tu ab mere kareeb kanhaa.

Its me Keerti

14 September 2007

LAASH

KATHGHARE MEIN KHADI EK LAASH
SANKDO SAWALO KE BOCHAAR
KYUN, ANEY HE SINDOOR KA
KIYA BEDARDI SE KHOON.................

LASH JORO SE HANSI,
CHARO AUR SNATA CHAYA
EK SAANS MEIN JO VO BOLI
SUNIYE AAP BHI USKEY ALFAAZ.......................

ATHRHA BARAS KE THE JAB
BIN PUCHEY THAMAYI GAYI
EK AJNABI KE HAATH DOR
SHAYAD YE EK RASAM RIWAAZ

PUREY BARAH SAAL USKEY AANGAN
KATHPUTLI BAN NACHTI RAHI
BADLEY MILTA TRISKAAR
AUR DIN KE DO SUKHI ROTI

MANA KE MIEN GHAR KE BAHU
JISKA NA APNA KOYI ASTITAV
PAR EK APNA VAJOOD TO HAI
MANJOOR NAHI THA JINDA JALNA

HAAN, UTHAYA MAINE EK BEDARD KADAM
APNEY ATYACHARO KA LIYA BADLA
JO MUJHEY ZALANA CHAHTA THA, USEY MEINE HE
UTHA DIYA ISE DUNIYA SEY

HAAN MANTI HUN AB YE BAAT
SADI BARSO PURANI MEIN EK LAASH
EK BAAR FIR MUJHEY MAAR DO
AB PARVAH NAHI CHAYEE TU JINDA ZALA DO...........

KEERTI VAIDYA

11 September 2007

Mohabat kya hai

Mohabat kya hai:-----------

Jab dard deye, Kadvi
Jab Kushi laye, Meethi

Jab hissey aye payar, Achi
Jab haath aye bichoda, Buri

Jab kareeb laye unhey, Mehkey
Jab Duriya na mittey, Cheekhey

its me keerti

ताजे महके रजनीगंधा

ताजे महके रजनीगंधा को थामे
भागती जाना, पहाड़ी के दूसरी ओर
उससे ना पा नीढाल बेठना
सूरज को ढलते अकेले नीहारना
भीगे गालों को आप ही पोंछना
इक आस लीए फीर लौट चलना
शायद, वो काल जरूर आयेगा...................कीरती वैदया

---------------------------------------------

TAZEY MEHAKEY RAJNIGANDHA KO THAMEY
BHAGTI JANA, PAHADI KE DUSREE AUR
USSEY NA PAA NEEDHAAL BETHNAA
SURAJ KO DHALTEY AKELEY NEEHARNAA
BHEEGEY GALO KO AAP HEE PONCHNAA
EK AAS LEEYE FEER LAOUT CHALNA
SHAAYAD, VO KAL JARUR AYEGA...............keerti vaidya

10 September 2007

chutput -9

MERA DARD BADTA HAI
NA PUCHO ISEY MUJHESEY
VO ROZ SISKTA HAI
NA PUCHO KABHI MUJHESEY......

KEERTI

"Anjaan Hai"

Haan, Mujhey ek sirfirey se payar hai
Na janey, kyun uss pey itna atebaar hai
Usko paney ke chahat beshumaar hai
Har ghadi sirf uska untzaar hai
Yeh dil, sirf uskey ley bekrarr hai
Vo, samjah kar bhi na janey kyun anjaan hai..........................

Its me keerti

8 September 2007

CHUTPUT-8

Kitna dard bhara hai tere payar mein
Acha hota hum kabi paas na atey
Na janey ka gum patey tumsey
Na kho janey ka darr patey tumsey
Muskurana bhi muskil hua ab
Jee kar bhi nahi jee patey ab
Payar kya hai tumne batlaya
Kasey Bhulana hai tumhey
Ab yeh tum he sheekhla do............Its me keerti

7 September 2007

CHUTPUT-7

Teri chahat mein
hosh to kho diya
Ab na miley
Gar tum mujhe
ye zindagi bhi
Kho na jao
Bas ek baar
Mude key dekho
Mein ab bhi
Khadhi ro rahi..............Its me Keerti

6 September 2007

Tera saya bhi nazar nahi ata

Haan, Maine tujhe paya
aur na jane kab kohya
Kabhi kabhi khiltey phoole
Tere payar ke rang laye
Chutee hun jab inhey
Ankhoo mein ounce bhar laye
Kyun bhar diya aanchal yaadio sey
Roz chubtey iskey kantey dil pey
Sukhey patto ke kurmuhrahat
Dil pey kare ek sursurahat
Tere sang na honey ke baat
Chupchap yaad dilati hai
Bhari bheed, Koi pukarey mera naam
Ek pal ruk, teri yaad dila jata hai
Peechay mude dekho,
Tera saya bhi nazar nahi ata hai........................

Its me keerti

KATHORE SHEELA

Meine tumhey jab payar kiya
Tab tumney mujhe nahi samjha

Aaj tum bethe mere pass
Apney payar ke duhai liye saath

Mein soch rahi kya paya tha
Jo ab mein kho rahi, kar na

Kiss baat ka ab pachtava
Jab hum beech kuch na raha

Mein koi nahi mom ke gudiya
Jo tere ansuo peeghlaye, jalaye

Mein to ek kathore sheela
Kyun sar yahan fode rahey.............

Its me keerti

5 September 2007

NA PATA

GUPCHUP APNEY MEIN KHOI CHUP RAAT
TIMTIMATEY TARO SE PUCHTI BAAT
AANKHO MEIN LIYE EK SWAAL
DIL MEIN CHUPAYE APNA HAAL
KOI TO BATAYE KYA AB KARE
KOI TO SAMJHAYE KYA BAH HOYE
NA JANE KITNEY DANE AB BHI IMTIHAAN
NA JANE KAB THAMEY AB YEH TUFAAN
NA YE RAAT KHATAM HOYE
NA BHORE KA PATA MOHE...................

ITS ME KEERTI

THODA JEE LAY

Na hai apne haath mein
Kuch bhi yaro
Jarruri to nahi ke
Sab socha he ho
Apni ye ek zindagi
To kyun na thora jee lay
Kuch kushi ke pal
Apne gumo ko kahani daba
Hansi ke chadder odhe
Chand khoobsurat sapno ko
Apni jholi mein samatey
Narm hawa ke zhonko mein
Apne ehassaso ko bheegaye
Titlleyo ke raang chura
Apne daaman mein bhare
Madhoshi bhare sangeet mein
Apne kadmo ko thirkaye
Chalo aaj sab chore
Kuch fursat ko jiyee
Apni bhaye faila
Nav umang mein lehraye..................Its me Keerti

वीदायी

हाँ, भीग गया आंगन
तेरे जाने की वीदायी में

टूट गीरे मोगरे के फूल
मेरे बीखरे केशों से

चटक गए रंगीन कांच
गोरी बाहों से

फैला रंग सींदुरी अस्मा पे
माथे की बींदीया से..................

कीरती वैधया

31 August 2007

याद आया

तेरी बाहों में
सारे
गम भुला
चुपचाप सोना
कानो में बस
तेरे शब्द घुलना
सांसों में तेरी
खुशबू का मीलना
तेरे
पयार के
नशे में सारी
रात गुजरना
हाँ, याद आया जब
रुठ बहुत तू दूर गया.................

कीरती वैदया