अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
5 September 2007
वीदायी
हाँ, भीग गया आंगन तेरे जाने की वीदायी में
टूट गीरे मोगरे के फूल मेरे बीखरे केशों से
चटक गए रंगीन कांच गोरी बाहों से
फैला रंग सींदुरी अस्मा पे माथे की बींदीया से..................
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