यह भी ज़िंदगी ही है...............
खाली रंगो से भी रंगीन हो जाती है ज़िंदगीनकली मोखोटो में से भी हंस जाती है ज़िंदगीउन एहसासों का क्या जो खोये दुनीया की भीड़ मेंम्रीग मरीचीका पयास का क्या जो भटके इस भीड़ मेंआंखो की हजार चाहते, चंद सीको से जगती कीसमतेमद में चूर उड़ता धुयॉ रात भर टकराते जाम के कांचपर उनका क्या जो ढ़ूंढ़े बस बेमोल प्यार के दो मीठे बोलबीस्री अपनी ही यादो को भीगोये अपनी ही बूंदों से।कीर्ती वैदया............................................
1 comment:
बहुत सुन्दर कविता लेकिन कुछ ग्रैमिटिकल गल्तियों के साथ
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