18 December 2007

कुछ ऐसे ही...


वो पास कभी बूंदों से भीगा जाये
कभी बरफ बन दिल को जमा जाये
कितनी भी कोशीश दूर जाने की
मेरे ज़हन में खंज़र बन गड़ जाये
कीतने खाब अधूरे आँखों के
तुझे याद कर हरपल छलक जाये

कीर्ती वैद्य........

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

याद में लिखी रचना बढिया है।बधाई।

Rachna Singh said...

याद

याद जब आती है
नींद अपने साथ
ले जाती है
ज़िन्दगी
का हर पल
जिया हुआ सच लगता है
पर फिर भी मन ऊस सच
से डारता है
जो वह आ कर बताऐगा
और नींद ही नहीं
याद करने के
अधिकार को भी
अपने साथ ले जायेगा
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2006/10/yaad.html

dpkraj said...

कीर्ति जी अभी आपका ब्लोग देखा और और उसके अंग्रेजी शीर्षक का हिन्दी करण किया 'मेरी अनभूति मेरे शब्दों में". बहुत अच्छा लगा. आप इसे जारी रखें. अगर ब्लोग का हिन्दी में नाम लिखतीं तो सोने में सुहागा होता. खैर कोई बात नही. आपका प्रयास अच्छा लगा.
दीपक भारतदीप

राजीव तनेजा said...

ज़ज़्बातों को उकेरती सुन्दर कविता....