न आया करो मेरे पास
मैं क्यों और कौन
कया रखा मेरे पास
चले जाओ यंहा से
बस छाया घुप अँधेरा
न कोई बस्ती न हस्ती
न कोई किनारा यंहा
मत आया करो, भर
नैनो का कटोरा
नहीं मिलती प्रेम भीख
मुझे बहलाने से भी
चले जाओ वर्ना
टूट न जाये मेरे
आँखों का बाँध
कीर्ती वैद्य
1 comment:
बहुत खूब....कम शब्दों में सब कुछ कह डाला कीर्ति जी आपने....
लिखती रहें.....
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