11 December 2007

आँखों का बाँध

न आया करो मेरे पास
मैं क्यों और कौन
कया रखा मेरे पास
चले जाओ यंहा से
बस छाया घुप अँधेरा
न कोई बस्ती न हस्ती
न कोई किनारा यंहा
मत आया करो, भर
नैनो का कटोरा
नहीं मिलती प्रेम भीख
मुझे बहलाने से भी
चले जाओ वर्ना
टूट न जाये मेरे
आँखों का बाँध

कीर्ती वैद्य

1 comment:

राजीव तनेजा said...

बहुत खूब....कम शब्दों में सब कुछ कह डाला कीर्ति जी आपने....

लिखती रहें.....