गीली रेत पे पायो के निशान
हाँ, मिट जायंगे,
सागर की इक लहर के संग
पर उन चिह्नों का क्या?
जो दिल पे छाए, बन अंधेर साये
नही मिटते अशरुओ के संग
ओर गहरे हो, ड़सते सारी रात
क्या है कोई ऐसा सागर
जो मिटा दे ये निशान...
कीर्ती वैद्य....
हाँ, मिट जायंगे,
सागर की इक लहर के संग
पर उन चिह्नों का क्या?
जो दिल पे छाए, बन अंधेर साये
नही मिटते अशरुओ के संग
ओर गहरे हो, ड़सते सारी रात
क्या है कोई ऐसा सागर
जो मिटा दे ये निशान...
कीर्ती वैद्य....
4 comments:
अच्छी कविता । समय का सागर ही ऐसे अंधेरे निशानों को धुंधला कर सकता है ।
सुन्दर कविता...
समय पुरानी यादों को बेशक भुला ना सके लेकिन धुंधला ज़रूर कर देता है ...
लिखती रहें
सुन्दर कविता । वाह ।
आरंभ
जूनियर कांउसिल
good words so true
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