सहजी कुछ यादें बन सूखे पात
उदास मन को दिलाती कुछ याद
किताब से बिखर सुनाती बात
नमकीन बूंदे समेट नम होती आप
सुर्ख फूलों का रही कभी हिस्सा
अब बस बचे यही दिन रात
कीर्ती वैदया
उदास मन को दिलाती कुछ याद
किताब से बिखर सुनाती बात
नमकीन बूंदे समेट नम होती आप
सुर्ख फूलों का रही कभी हिस्सा
अब बस बचे यही दिन रात
कीर्ती वैदया
2 comments:
वाह, बहुत खूब लिखा है
बहुत बढिया,अच्छी अभिव्यक्ति हॆ.
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