अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
24 December 2007
जब, तुम हमसे रुठोगे
कितने अधूरे सपने टूटेंगे जब, तुम हमसे रुठोगे गुनगुनाना मेरा बंधेगा जब, तुम हमसे कटोगे तुम तो हर बार मनाते हो पर जब, तुम हमसे रूठे हम कया तुम्हे मना पाएंगे.. तुम्हे फिर अपने प्रेम में रंग पाएंगे जब, तुम हमसे रुठोगे
बढ़िया रचना!! कल्पनाएं हमसे न जाने क्या क्या बातें करवा जाती है। जब यही कल्पनाएं शब्दों का आवरण लेकर उतरती हैं तो अक्सर रोमांटिक कविताएं ही जन्म लेती है। शुभकामनाएं
3 comments:
jo pyar karte haen
rudhtey hee kahaan hae
रूठना-मनाना तो प्यार का हिस्सा ही है :)
बढ़िया रचना!!
कल्पनाएं हमसे न जाने क्या क्या बातें करवा जाती है। जब यही कल्पनाएं शब्दों का आवरण लेकर उतरती हैं तो अक्सर रोमांटिक कविताएं ही जन्म लेती है।
शुभकामनाएं
Post a Comment