31 January 2008

मूक सवाल

मूक सवालो के, क्या कुछ जवाब है?

जब भी ढ़ूंढ़ा , तुम्हारी गहरी आँखों में
उलझी रह गयी, तेरी खामोशी में......
ें
हो सकता है, तुम कहते तों हो
ओर मुझ तक पहुँचता भी हो...

पर शायद,

मैं सब समझना नही चाहती
ओर तुम कह, रूलाना भी नही चाहते...

कीर्ती वैदया...

सुबह

दरख्तों पर बैठी कोयल

जब कूकती है ....
तो लगता है मानों ...
आम्र वाटिका मैं
मंजरों की खुशबू है
मदमस्त मन जब
पुलकित सा होता है
तभी ......
नींद खुल जाती है !!

(यह पंक्तिया मेरे मित्र उत्पल मिश्र जी की है)

23 January 2008

छोरा ........

इक सरीखा सा छोरा, मुझसे टकराया
गुथ्मुठ बातो से भरा, छु मेरे मन को गया
हलकी मीठी धुप सा, ज़िन्दगी में रम गया
सलीकेदार सवाल- आप केसी हैं ?
अरे, मुझे फूलों सा खिला गया...
सरसरी बातो में, दीवाना बना गया
तनिक मुलाकातों में, अपना बना गया
सच, वो छोरा मेरा प्यार बन गया.......

कीर्ती वैद्य....

19 January 2008

सुनो...

अच्छे दोस्त हो तुम मेरे
कितना ख्याल तुम करते
सात समुंदर पार भि
रोज़ मुझे याद रखते
हर नन्ही जिद के आगे
रोज़ मुझे मनाते
बच्चों से कहानिया बना
रोज़ सपना दिखा बहलाते
अनकहे दर्द को समझते
चुपके से अश्रु पौंचते
ढेरों अपनापन, इक पल में
मेरी झोली में भर जाते
सुनो, तुम मेरे दोस्त से
हमसफ़र क्यों नहीं बन जाते.......

कीर्ती वैद्य

18 January 2008

जो नहीं अपना....

क्यों अस्मा को छुए, वो तरंगे
जो सिमटी मेरी हथलियो में...
क्यों नेनो के सागर में तेरे, वो सपने
जो कैद मेरे दिल में...
क्यों भागे मन, तुम्हारे पीछे
जो बस जुडे ख्याल बन मेरे...
क्यों चुगु सपने, तुमसे जुडे
जो कभी नहीं तेरे-मेरे...
क्यों सजाऊ, रेत के घरोंदे
जो ना कभी हमारा बेसेरा.....

कीर्ती वैद्य..

16 January 2008

चले गए...

हाँ, आज तुम आये
फिर इक बार मिले
दुआ-सलाम कर
फिर नासमझ बन गए
मुझे तनहा छोड
फिर आज चले गए
बिन समझे जसबात
फिर रूला चले गए

कीर्ती वैद्य

8 January 2008

जो अब बस तुम्हारा है

ख़तम न हो कभी सिलसिले
जो अब तुमसे बने है
मिटे न कभी अपने फासले
जो अब नज्दिकिया बनी है
टूटे न कभी मन के धागे
जो अब तुमसे जुडे है
बहे न कभी अब आंसू
जो तुमने बांधे है
महकता रहे अब प्यार
जो अब तुमसे मिला है
हर सांस में रहे इक नाम
जो अब बस तुम्हारा है

कीर्ती वैद्य

4 January 2008

जिंदगी अपने घर

पडोस से उधार मांग आज सुबह लायी
सहली से मांग इक कटोरा सावन लायी
बच्चों से मांग भोली मासूमियत लायी
माली से मांग फूलों की क्यारिया लायी
आज अपने दिन को ऐसे ही सवांर
जिंदगी को अपने घर बुला लायी

कीर्ती वैद्य

तुझ संग जीने-मरने लगे ...........

कया है, कल्पना से परे
जाना जब तुम्हे सपनो से परे
विश्वास का हाथ थामे
भाग चला जब मन, तेरे पीछे
छोड़ सब रस्मे, बिन पूछे सबसे
तुम संग जब, खाने लगा कस्मे
प्रेम की अंधी सिडियो से आगे
जुनूनी बदलो को पार कर के
जब तुझ संग जीने-मरने लगे ...........

कीर्ती वैद्य........

2 January 2008

कुछ इस तरह.........

अपने ही शहर, अनजान बनी घूमती
दुनिया के भीड़ में, अपने को तलाशती
भरे बाजारों में, अपनी ख्वाशियो को तोलती
नंगी बेहया नजरो से, अपने को छुपाती
कड़वे ज़हर को, चुपचाप कंठ से उतारती
कोने में छुप, अपने पर ही रोती - हँसती
भागती ज़िन्दगी में, अपना ही दम तोड़ती
कुछ इस तरह, वो रोज़ जी लेती


कीर्ती वैद्य