सुबह - सुबह
दोस्त का फ़ोन
क्या मुसीबत है
अभी क्या काम
हम तों शाम
को मिलते है
क्या इसका नशा
अभी उतरा नही?
हाँ, बोलो....
सुनो मेरी बात ,
बुरा न मनाना
अपनी दोस्ती
पे आंच न लाना
सारी रात
सो न पाया
इक शादीशुदा,
बच्ची का बाप
फीर भी न जाने
क्यों तुमसे
दिल लगा बैठा
इक दोस्त से
बढ तुम्हे
अपनी प्रेमीका
मान बैठा
हो सके तों
माफ़ी देना.....
अरे, ये क्या
कहते हो
मेरे दिल मैं
तों ऐसा
कुछ नही
छोडो फालतू
की बाते
शाम को
संग बैठ
फिर पीयेंगे
जाम.........
कीर्ती वैद्या
दोस्त का फ़ोन
क्या मुसीबत है
अभी क्या काम
हम तों शाम
को मिलते है
क्या इसका नशा
अभी उतरा नही?
हाँ, बोलो....
सुनो मेरी बात ,
बुरा न मनाना
अपनी दोस्ती
पे आंच न लाना
सारी रात
सो न पाया
इक शादीशुदा,
बच्ची का बाप
फीर भी न जाने
क्यों तुमसे
दिल लगा बैठा
इक दोस्त से
बढ तुम्हे
अपनी प्रेमीका
मान बैठा
हो सके तों
माफ़ी देना.....
अरे, ये क्या
कहते हो
मेरे दिल मैं
तों ऐसा
कुछ नही
छोडो फालतू
की बाते
शाम को
संग बैठ
फिर पीयेंगे
जाम.........
कीर्ती वैद्या
2 comments:
बहुत खूब...लिखती रहें
इक दोस्त से
बढ तुम्हे
अपनी प्रेमीका
मान बैठा
dosti aur prem ke beech ki lakir to kafi dhoondhali si lagti ahi..
Achhi rachna hai ek alag si bat par.
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