हाँ, तुम रोज़ याद आते हो
आँख खुले पास खडे होते हो
सात समुंदर पार गए हो
फीर भी, मुझे याद रखते हो
सुनु, क्यों नहीं सोते तुम
जब सूरज नीकले यहॉ
तुम रात अपनी क्यों जलाते
सारी रात जग बात करो तब
जब रात पसरे मेरे यहाँ
सपनो में चले आते हो तब
'कीरू' को इतना क्यों चहाते हो
उसे क्यों इतना सताते हों
जब रहना ही अलग हमे
तो क्यों रोज़ बहाना बन
मिलने भागे आते हों........
कीर्ती वैदया...
आँख खुले पास खडे होते हो
सात समुंदर पार गए हो
फीर भी, मुझे याद रखते हो
सुनु, क्यों नहीं सोते तुम
जब सूरज नीकले यहॉ
तुम रात अपनी क्यों जलाते
सारी रात जग बात करो तब
जब रात पसरे मेरे यहाँ
सपनो में चले आते हो तब
'कीरू' को इतना क्यों चहाते हो
उसे क्यों इतना सताते हों
जब रहना ही अलग हमे
तो क्यों रोज़ बहाना बन
मिलने भागे आते हों........
कीर्ती वैदया...
2 comments:
जब रहना ही अलग हमे
तो क्यों रोज़ बहाना बन
मिलने भागे आते हों........
दर्द और प्रेम विरह की दूरियों पर लिखी एक सुन्दर कविता..
nice , expression and feeling , keep the good work going
rachna
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