अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
27 December 2007
खिचडी
सपनो के खिचडी पका भोर किरनों का दे छोंका भरी दुपहरी का उबाला साँझ हवा का मसाला इंद्रधनुषी रंगो से सज़ा निहार रही तुम्की रहा
कीर्ती वैद्य
3 comments:
Anonymous
said...
तुम्की kii jagah agar tumhari ho to jyaada refined lagega shyaad
3 comments:
तुम्की
kii jagah agar tumhari ho to jyaada refined lagega shyaad
likha to maine bhi tumhri tha..but tumki mein na aney kyun kuch jayda he apnapan laga.....
thnxs for sugestion
What a delicious recipe ....who vl nt fall 4 such literary dinner !!!
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