28 November 2007

एहसास क्यूँ रहे.....

हरी झील आँखों का रंग
क्यूँ रोज़ करे तंग

सुर्ख होंठो की लाली
क्यूँ जलाती रात भर

खनकती चुडियो का रंग
बरसाए नैन सारी रैन

हाँ, वो अब साथ नही
फिर, एहसास क्यूँ रहे.....

कीर्ती वैदया

1 comment:

Unknown said...

हिन्दी रचना का ये अन्दाज़ यकीनन काबील-ए-तारीफ है। हिन्दी काव्य के इस पथ पर ऐसे ही चलते रहिये। शुभकामनाऐं

रंगकर्मी