इक अनछुआ पहलू पास रहे
आँख मिचते अक्स में बदले
अन्बुझे सवालो का अंबार लगा
न जाने कंहा धुयां हो जाए
क्या उनके जवाब
उनमे ही मन घुल जाए
अपनी ही परछाइयो से
आप ही डर जाए
ज़िंदगी का इक दिन
कुछ ऐसे ही बीत जाए...
कीर्ती वैदया...
आँख मिचते अक्स में बदले
अन्बुझे सवालो का अंबार लगा
न जाने कंहा धुयां हो जाए
क्या उनके जवाब
उनमे ही मन घुल जाए
अपनी ही परछाइयो से
आप ही डर जाए
ज़िंदगी का इक दिन
कुछ ऐसे ही बीत जाए...
कीर्ती वैदया...
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