अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
26 November 2007
बादलों के पार
बादलों के पार इक ओर जहां लेकर जाना, तुझे अपनेसंगवहाँ नछुएरौशनी, नजलायेअब, नदेखेदुनीया, नसुनायेअब, बसबातेहो, अपनेदीलकी कुछरातेहो अपनेसुकूनकी.....
1 comment:
कीर्ति.. एक बार एक flight में मेरे मन में ठीक ऐसे ही विचार आये थे.. आपने बखूबी उसे उतारा है शब्दों में.
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