आँख का अंधेर गलियारा
इक रोता नन्हा सपना
न सूर्ये कीरण छुए
न रात चांदनी
हंसा पाए
कई दीन का भूखा
सुस्त चाल लीए
खामोश धड़कन
भी रो जाए
दस्तक सुन, आस लीए
इक सांस में, हंस जाये
न पा, फीर मुरझाये
गुमनाम, फीर
जीए चला जाये.....
कीर्ती वैदया..
इक रोता नन्हा सपना
न सूर्ये कीरण छुए
न रात चांदनी
हंसा पाए
कई दीन का भूखा
सुस्त चाल लीए
खामोश धड़कन
भी रो जाए
दस्तक सुन, आस लीए
इक सांस में, हंस जाये
न पा, फीर मुरझाये
गुमनाम, फीर
जीए चला जाये.....
कीर्ती वैदया..
2 comments:
कीर्ति जी कविता बहुत पसन्द आई...अच्छा लिखा आपने
लेकिन एक बात फिर से कहना चाहूँगा कि आप अगर अपनी ग्रामैटिकल गल्तियों को ठीक कर लें तो आपकी रचनाएँ और ज़्यादा प्रभावी होंगी...
अगर इस बारे में कोई मदद चाहिए तो बन्दा हाज़िर है...
galti sudhar de hai...thnxs
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