कभी अकेली बेठ सोचती हूँ
तेरे पयार में कया पाया
अपनी हर ख़ुशी का साथी बना
अपने को ही तनहा कीया
अचछी थी ये सुनी जिन्दगी
तुझे हमदम बना सब बरबाद कीया
खुशनुमा सुबह सी मुस्कुराती थी
तेरे आने पे बुझा दीया तों पाया
कीसे के आने का इंतज़ार था
तेरे जाने के बाद उसे भी खोया
कीर्ती वैदया
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