सुलगती हुई आग इस दील में है
पुरानी यादो को कभी जलाती है
ना जाने कीस दरद की पीटारी
इक इक सांस भी लगती भारी
ना सुकून का कोई कीनारा
ना हवाओ में कोई अफसाना
सूखे पतों सी उड़ती जिन्दगी
दर दर भटकती ये चीखती
ना कभी कोई नया मोड आये
ना कोई कीनारा नज़र आये
बस खीसक्ती तों कभी सीसकती
कदम बढ़ा रही ये जिन्दगी
कीरती वैद्या.......
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