20 August 2007

मुकत कर दो

सुस्त कदमो सी चलती जिंदगी के
क्या तुम सारथी हो

हाँ, तो ठहर जाओ यंही
इसे बेसुरे वहान की
सवारी मैं नही.......

बेढब ढ़ोते बोझे की तरह
कृपा मुझे ना ढोयो
मैं कोई वसतु नही......

अपने चक्रवयहू में
मुझे ना पीसो
मैं नीरजीव समान नही...........

हे सारथी यंही रुक जाओ
अनयथा मेरी आत्मा को
मुझे से मुकत कर दो......................

कीर्ती वैधया..

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