सुस्त कदमो सी चलती जिंदगी के
क्या तुम सारथी हो
हाँ, तो ठहर जाओ यंही
इसे बेसुरे वहान की
सवारी मैं नही.......
बेढब ढ़ोते बोझे की तरह
कृपा मुझे ना ढोयो
मैं कोई वसतु नही......
अपने चक्रवयहू में
मुझे ना पीसो
मैं नीरजीव समान नही...........
हे सारथी यंही रुक जाओ
अनयथा मेरी आत्मा को
मुझे से मुकत कर दो......................
कीर्ती वैधया..
No comments:
Post a Comment