6 August 2007

अछा लगता है

भीड़ से अलग
चुपचाप रहना
अछा लगता है

अपनी सुनी दुनीया को
तेरी यादो के संग बुनना
अछा लगता है

चांद के झूले में
तेरा हाथ पकड़ चलना
अछा लगता है

इंदरधनुषी अस्मा में
अपने पयार का रंग भरना
अछा लगता है

हाँ, इन सूनेपन के संग
तेरी मधुर बातो का संग
अचा लगता है.......................

कीर्ती वैध्या

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