भीड़ से अलग
चुपचाप रहना
अछा लगता है
अपनी सुनी दुनीया को
तेरी यादो के संग बुनना
अछा लगता है
चांद के झूले में
तेरा हाथ पकड़ चलना
अछा लगता है
इंदरधनुषी अस्मा में
अपने पयार का रंग भरना
अछा लगता है
हाँ, इन सूनेपन के संग
तेरी मधुर बातो का संग
अचा लगता है.......................
कीर्ती वैध्या
चुपचाप रहना
अछा लगता है
अपनी सुनी दुनीया को
तेरी यादो के संग बुनना
अछा लगता है
चांद के झूले में
तेरा हाथ पकड़ चलना
अछा लगता है
इंदरधनुषी अस्मा में
अपने पयार का रंग भरना
अछा लगता है
हाँ, इन सूनेपन के संग
तेरी मधुर बातो का संग
अचा लगता है.......................
कीर्ती वैध्या
No comments:
Post a Comment