अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
29 August 2007
सारी रात
सारी रात टूटते तारो को देखना सपने पुरे होने की बात कहना कभी हंसते चांद से जा उलझना कभी काले मेघा को चले जा कहना उफ़, पुरी रात तेरा नाम बडबडना सूरज नीकले तों कुछ ना पाना बस में ओर मेरा इंतज़ार रह जाना........कीरती वैधया
1 comment:
Excellent...how u inserted hindi fonts????
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