एक नीमंत्रण पत्र आया
चीर्पिरिचत सा नाम लीखा
याद या मामा घर से आया
कुछ बरस चली गयी पीछे
नन्हा सा मुन्ना, गोद ले घुमू
कभी सकूल तो कभी बाज़ार ले जाऊ
संग बेठे कभी गीत गाये
कभी छुप छुप इमली खाये
कभी उसका मुह बंद कर रोना रोकु
पढाते पढाते मारू जब उसे
खुद हे रोने बेठ जाऊ
उसे कभी फ़र्क ना पडे
ना जाने कब हम दूर हुए
जीवन चकर में फंसे कुछ उलझे
कई साल यूँही बीत गए
निमन्त्रण देख याद आया
अपना भी इक छोटा भाई है
जीसका कल वीवाह है
बीन इक पल गवाये
दफ्तर में अर्जी दे
कुछ यादे कुछ अपना समान समेटे
आखरी बस पकड़, चल पडी
अपने मामा के घर
कुछ पुराने कुछ नए रीश्ते जोड़ने...........
कीर्ती वैदया
1 comment:
aapki kuch kavitaye padhi,, kafi accha likha hai, kosis karo aur accha likho
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