इक खबर .........
पावन मंत्रों का उच्चारणगूंथे गीले बालो की चुटियापल्लू को संभालतीलाल टिकुली माथे सजाती"बहु - जल्दी चाय दे दे 'मुस्करा रसोई में जाचूल्हा जलाती.......आहुति बन अग्नि में अपना अस्तित्व खोतीबन एक खबर.......नामी अखबार कीकोने में सहजी"दहेज- इक ओर बलि चढी "कीर्ती वैद्य ...३१/०३/२००८
12 comments:
"बन एक खबर.......
नामी अखबार की
कोने में सहजी
"दहेज- इक ओर बलि चढी "
विवाह की रूमानी दुनिया कैसे विद्रूप हो जाती है सामाजिक दोगलेपन से, इस बात को बखूबी उठाया है आपने.
bahut sundar badhai
एक सुन्दर,सजीली ज़िन्दगी
क्षणांश में धुंये में परिवर्तित.......
ख़त्म कहानी की मार्मिक अभिव्यक्ति.....
achi rachna hai ,,samaj ko chitrit karti hai
कड़वी सच्चाई से रुबरू कराती सटीक कविता....
लिखती रहें
किर्ती जी आपने बेहद सहज अंदाज मे बहुत गंभीर विषय को ''इक खबर .........'' नामक कविता के माध्यम से उठाया है। दहेज समस्या वास्तव में बहुत तेजी से सामाजिक विक्रति के रुप में हमारे सामने आयी है और अगर इसके खिलाफ हमने वातावरण नहीं बनाया तो आने वाला समय हमें कभी भी माफ नहीं करेगा।
सार गर्भित कविता के लिये आपका बहुत आभार॰॰॰॰॰॰॰॰
गागर मे सागर भरना तो कोई आप से सीखे समयानूकूल कविता के लिये बधाई
sach kaha aor khoob kaha aapne.
आपने अपनी बात को कम से कम शब्दों में कहने की कला सीख ली है, बधाई।
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खबरें अखबार की
अब कविता में आने लगीं
कीर्ति की कविताएं
सबको लुभाने लगीं
सच्चाई बतलाने लगीं
अविनाश वाचस्पति
नैनो ने जो भी कहा
उस पर आप भी कहें
चुप न रहें
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