1 April 2008

इक खबर .........



पावन मंत्रों का उच्चारण
गूंथे गीले बालो की चुटिया
पल्लू को संभालती
लाल टिकुली माथे सजाती
"बहु - जल्दी चाय दे दे '
मुस्करा रसोई में जा
चूल्हा जलाती.......
आहुति बन अग्नि में
अपना अस्तित्व खोती
बन एक खबर.......
नामी अखबार की
कोने में सहजी
"दहेज- इक ओर बलि चढी "

कीर्ती वैद्य ...३१/०३/२००८

12 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

"बन एक खबर.......
नामी अखबार की
कोने में सहजी
"दहेज- इक ओर बलि चढी "

विवाह की रूमानी दुनिया कैसे विद्रूप हो जाती है सामाजिक दोगलेपन से, इस बात को बखूबी उठाया है आपने.

समय चक्र said...

bahut sundar badhai

रश्मि प्रभा... said...

एक सुन्दर,सजीली ज़िन्दगी
क्षणांश में धुंये में परिवर्तित.......
ख़त्म कहानी की मार्मिक अभिव्यक्ति.....

Anonymous said...

achi rachna hai ,,samaj ko chitrit karti hai

राजीव तनेजा said...

कड़वी सच्चाई से रुबरू कराती सटीक कविता....
लिखती रहें

vinodbissa said...

किर्ती जी आपने बेहद सहज अंदाज मे बहुत गंभीर विषय को ''इक खबर .........'' नामक कविता के माध्यम से उठाया है। दहेज समस्या वास्तव में बहुत तेजी से सामाजिक विक्रति के रुप में हमारे सामने आयी है और अगर इसके खिलाफ हमने वातावरण नहीं बनाया तो आने वाला समय हमें कभी भी माफ नहीं करेगा।
सार गर्भित कविता के लिये आपका बहुत आभार॰॰॰॰॰॰॰॰

Krishan lal "krishan" said...

गागर मे सागर भरना तो कोई आप से सीखे समयानूकूल कविता के लिये बधाई

डॉ .अनुराग said...

sach kaha aor khoob kaha aapne.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपने अपनी बात को कम से कम शब्दों में कहने की कला सीख ली है, बधाई।

Anonymous said...

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Anonymous said...

खबरें अखबार की
अब कविता में आने लगीं
कीर्ति की कविताएं
सबको लुभाने लगीं
सच्‍चाई बतलाने लगीं

अविनाश वाचस्‍पति

अविनाश वाचस्पति said...

नैनो ने जो भी कहा
उस पर आप भी कहें
चुप न रहें