अपनी ४ बहुओ की लाडली सास। जब भी उनकी कोई भी बहु गरभती होती तों उसके हजारो नखरे सर आंखो पर उठाती ।
कभी उनके सर तेल डालती कभी उनकी रूचि का खट्टा - मीठा पकवान बनाती ।
बच्चे के जनम के समय हमेशा सब से आगे हॉस्पिटल में खड़ी रहती ..कोई समस्या तों नही ....सब ठीक तों हैना डॉक्टर जी।
तभी एक नर्स लेबर रूम से चिल्लाती आती है "माता जी लड़की हुई है" ......और माता जी का पीला चेहरा और वो शब्द " ओह ...लड़की हुई है "
न जाने क्यों यह शब्द मुझे हमेशा उनसे बहुत दूर खींच ले जाते, ऐसा लगता की उन्होने मुझे और अपने को भी गाली दी है।
क्या सच में लड़की का होना अपराध है ? क्या एक औरत को दूसरी औरत का नव स्वागत ऐसे करना चाहिए ?
क्यों लड़कियों और लड़को की परवरिश में भी फर्क रखा जाता है जबकि दोनों एक ही घर के बच्चे है , लड़का होता है तों ढोल पीते जाते है पूरे शहर का मुँह मीठा किया जाता है और अपनी ही बेटी के जन्म पर अपना ही मुँह खट्टा हो जाता है।
देश प्रगति की रहा पर है, शिकषित लोगो की संख्या बढ़ रही है पर हमारी सबकी सोच अब भी वंही के वंही थकी और बीमार पड़ी है ।
कीर्ती वैद्य .....
अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है.... शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
25 April 2008
ओह ..लड़की हुई है...
एक महिला जिनके साथ ३२ साल जुड़ी रही, एक खुशमिजाज़ महिला जो घर के हर काम में निपुण थी ।
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5 comments:
जाने कब से हम सब यही सुनते आ रहे हैं,
अब थोडा बदलाव आया है......
वंश यानि बेटा,यह सामाजिक धारणा रही,
दूसरे लड़कियों के साथ अनेकानेक मुश्किलें आती है,
जो समाज कि ही देन है,जिससे हर कोई भागता रहा......
अब लड़की होने पर कम मातम देखने को मिलता है.....
बेटी के पैदा होने पर कहते हैं कि "लक्ष्मी" आयी है
पूछो तो जरा फिर चेहरों पर क्यों मायूसी छायी है
ये लाईने मैने 15-16 साल पहले लिखी थी
कीर्ति जी बात सीधी सी है हम कहते कुछ और है करते कुछ और है दोहरे माप्दण्ड है हमारे । दहेज देना हो तो बुरी बात लेना हो तो अच्छा लगता है क्यों । दहेज लेना अप्राध है तो दहेज देना अपराध क्यो नहीं है । बेटे के घर मे मा बाप रह सकते है बेटी के घर मे नही क्यों । बूढे मा बाप के भरण पोषण के लिये समाजिक रूप या कानूनी रूप से बेटे ही जिम्मेवार क्यों बेटिया क्यों नही। सम्पति आज भी बेटो को दी जाती है बेटियों को नही क्यों बहुत से मुद्दे जुड़े है इस लड़की पैदा होने पर नाखुशी के साथ । आप इसे isolation मे हल नही कर सक्ते
जब तक ये दोहरे मापद्ण्ड नही बदलेगे समाज नही बदलेगा पहले पूरी समाजिक व्यवस्था बदलनी होगी फिर बेटिया अपना सही स्थान पा सकेंगी
बेटी के पैदा होने पर कहते हैं कि "लक्ष्मी" आयी है
पूछो तो जरा फिर चेहरों पर क्यों मायूसी छायी है
ये लाईने मैने 15-16 साल पहले लिखी थी
कीर्ति जी बात सीधी सी है हम कहते कुछ और है करते कुछ और है दोहरे माप्दण्ड है हमारे । दहेज देना हो तो बुरी बात लेना हो तो अच्छा लगता है क्यों । दहेज लेना अप्राध है तो दहेज देना अपराध क्यो नहीं है । बेटे के घर मे मा बाप रह सकते है बेटी के घर मे नही क्यों । बूढे मा बाप के भरण पोषण के लिये समाजिक रूप या कानूनी रूप से बेटे ही जिम्मेवार क्यों बेटिया क्यों नही। सम्पति आज भी बेटो को दी जाती है बेटियों को नही क्यों बहुत से मुद्दे जुड़े है इस लड़की पैदा होने पर नाखुशी के साथ । आप इसे isolation मे हल नही कर सक्ते
जब तक ये दोहरे मापद्ण्ड नही बदलेगे समाज नही बदलेगा पहले पूरी समाजिक व्यवस्था बदलनी होगी फिर बेटिया अपना सही स्थान पा सकेंगी
कोख से
कोख से
(परिचय - एक गर्भवती महिला अल्ट्रासोनोग्राफी सेंटर में भ्रूण के लिंग का पता कराने के लिए जाती है। जब पेट पर लेप लगाने के बाद अल्ट्रासाउंड का संवेदी संसूचक घुमाया जाता है, तो सामने लगे मानिटर पर एक दृष्य उभरना शुरू होता है। इससे पहले कि मानिटर में दृष्य साफ साफ उभरे, एक आवाज गूंजती है। और यही आवाज मेरी कविता है - ’कोख से’ । आइये सुनते हैं यह आवाज -
माँ सुनी मैने एक कहानी !
सच्ची है याँ झूठी मनगढ़ंत कहानी ?
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बेटी का जन्म घर मे मायूसी लाता,
खुशियों का पल मातम बन जाता,
बधाई का एक न स्वर लहराता,
ढ़ोल मंजीरे पर न कोई सुर सजाता ! माँ....
.
न बंटते लड्डू, खील, मिठाई, बताशे,
न पकते मालपुए, खीर, पंराठे,
न चौखट पर होते कोई खेल तमाशे,
न ही अंगने में कोई ठुमक नाचते। माँ....
.
न दान गरीबों को मिल पाता,
न भूखों को कोई अन्न खिलाता,
न मंदिर कोई प्रसाद बांटता,
न ईश को कोई मन्नत चढ़ाता ! माँ.....
.
माँ को कोसा बेटी के लिए जाता,
तानों से जीना मुश्किल हो जाता,
बेटी की मौत का प्रयत्न भी होता,
गला घोंटकर यां जिंदा दफ़ना दिया जाता ! माँ....
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दुर्भाग्य से यदि फ़िर भी बच जाए,
ताउम्र बस सेवा धर्म निभाए,
चूल्हा, चौंका, बर्तन ही संभाले जाए,
जीवन का कोई सुख भोग न पाए ! माँ.....
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पिता से हर पल सहमी रहती,
भाईयों की जरूरत पूरी करती,
घर का हर कोना संवारती,
अपने लिए एक पल न पाती ! माँ....
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भाई, बहन का अंतर उसे सालता,
हर वस्तु पर अधिकार भाई जमाता,
माँ, बाप का प्यार सिर्फ़ भाई पाता,
उसके हिस्से घर का पूरा काम ही आता ! माँ....
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किताबें, कपड़े, भोजन, खिलौने,
सब भाई की चाहत के नमूने,
माँ भी खिलाती पुत्र को प्रथम निवाला,
उसके हिस्से आता केवल बचा निवाला ! माँ....
.
बेटी को मिलते केवल ब्याख्यान,
बलिदान करने की प्रेरणा, लाभ, गुणगान,
आहत होते हर पल उसके अरमान,
बेटी को दुत्कार, मिले बेटे को मान ! माँ....
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शिक्षा का अधिकार पुत्र को हो,
बेटी तो केवल पराया धन हो,
इस बेटी पर फ़िर खर्चा क्यों हो ?
पढ़ाने की दरकार भला क्यों हो ? माँ....
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आज विज्ञान ने आसान किया है,
अल्ट्रा-सोनोग्राफ़ी यंत्र दिया है,
बेटी से छुट्कारा आसान किया है,
कोख में ही भ्रूण हत्या सरल किया है ! माँ...
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माँ तू भी कभी बेटी होगी,
इन हालातों से गुजरी होगी,
आज इसीलिए आयी क्या टेस्ट कराने ?
मुझको इन हालातों से बचाने ! माँ....
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माँ यदि सच है थोड़ी भी यह कहानी,
पूर्व, बने मेरा जीवन भी एक कहानी,
देती हूँ आवाज कोख से, करो खत्म कहानी,
करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।
करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।
करो समाप्त मुझे, न दो मुझे जिंदगानी।
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कवि कुलवंत सिंह
shukriya Rashmi did...
Apney vichar rakhney ke liye
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