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अभी-अभी गंदे नाले से
मेरी लाश निकाली गयी
कहते है....
फटेहाल, नशे में धुत
मैं आप ही यंहा गिरा
अपनी मौत का, मैं
आप ही जिमेदार हूँ
अरे रोको....
बेवजह हस्पताल वाले
अस्थि -पंजर अलग कर
मेरी पोस्टमार्टम रीपोर्ट
कमज़ोरी से मरा लिख रहे
बेवाकुफो....
यह तो भुझो
क्यों हुआ मैं कमज़ोर
जब सेंकडो धक्के खा भि
नहीं पा सका, मैं नौकरी
भूख रोक अपनी
माँ का इलाज तो करवा गया
पर अपनी मौत
मैं ना रोक सका ....
हाँ डाल दो ....
अखबार की सुर्खियों में
लावारिश लाश की मौत का
अबतक कोई सुराग ना मिला.....
कीर्ती वैद्य ..११ मार्च 2008
5 comments:
kiirti ji
इस कविता मे आपने वास्त्विकता मे और बाहर सामने आने वाले पक्ष मे अन्तर को बखूबी उभारा है। बहुत खूब
आप ऐसे ऐसे विष्य कहाँ से ले आती है अचरज होता है
kirti ji
एक बात और कहनी थी कुछ जगह स्पेलिग का धयान रखेगे तो अच्छा रहेगा जैसे
लावारिश लावारिस
भि भी
आप भी को अक्सर भि लिखते है जो गलत हैकृप्या इसे पढ़कर डीलीट कर देया रीजैक्ट कर दे इसे पुब्लिश करने की आव्श्यक्ता नही है
Sir..mere dimaag ke sari upaj rehti hai...books jyada padney ka natija lagta hai mujhey..thanxs .
ji mein apni galti sudhar lungi....rehney dey ..koi fark nahio padta ..
कीर्ति...बहुत ही सशक्त और झकझोर देने वाली रचना....
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