31 March 2008

हमे आज फिर....

कुछ आवाजे बेवजह कानो में गूंजे
हाथ रख कितना भि चाहे रोकू इन्हे
आँखों से बन आंसू दिल पिघला जाये
कितना भि भाग, परछाइयों से बचा जाये
ज़िन्दगी फिर मुलाकात उनसे करवा जाये
उफ़...यह दर्द देती सिस्किया...
हमे आज फिर बर्बाद ना कर जाये...

कीर्ती वैद्य ......२९ मार्च २००८....

3 comments:

Krishan lal "krishan" said...

My goodness , what a wonderfulpoem. It just went straight into the heart. Superb, Kirti, Superb. लेकिन……………।

कानों मे गूँजती आवाजे बेवजह नहीं सनम
जिन्दगी शर्मिन्दा है उसने दिये क्यों तुझको गम
जिन्दगी फिर उनसे जो मुलाकात यूँ करवा रही है
सच मान हर खुशी तुझे वपिस लोटाने जा रही है
May GOD bless you

Keerti Vaidya said...

thanxs sir....

kash asa hota humari kushiya wapis lout ati..par...asa kabhi na hoga...

Krishan lal "krishan" said...

तुम्हे हो हो ना हो लेकिन मुझे तो एतबार है
तेरी जिन्दगी मे जल्द ही आने वाली बहार है