17 April 2008

यादो का सिलसिला..

यार, यह यादो का सिलसिला क्यों होता है...

भूलना चाहते है हम तुम्हे,
फिर भि तू हर वक़्त क्यों पास होता है.

दुनिया से सुना है आस्मा और भि है
फिर यही इक टुकडा मेरे नसीब क्यों है

थमती क्यों नहीं यह बरसात आँखों की
निकलती क्यों नहीं याद तेरी इसे दिल से

दुनिया से सुना है सत्रंगो के बारे में
फिर इक ही रंग मेरे हिस्से क्यों है.

भीड़ है रिश्तो -दोस्तों के इस जहाँ में
फिर भि मैं तन्हा क्यों तेरी याद में

दुनिया से सुना है, प्यार के मीठे एहसास के बारे में
फिर यह कैसेला एहसास हें क्यों तेरे प्यार में

रुक क्यों नहीं जाती यह सांसे अब मेरी
शायद यूँही ख़त्म हो यह अब यादे तेरी

और ख़तम हो जाये यह यादो का सिलसिला भि....

कीर्ती वैद्य ०५ मई २००७

1 comment:

Krishan lal "krishan" said...

बहुत ही सुन्दर कविता
परन्तु

यूँ मिटाने से अगर मिटती किसी की याद
तो कौन करता याद तुम्हे कौन मुझ को याद
इन्सान मिट जाता है ये यादे नही मिटती
सावन खत्म होने से बरसाते नही मिटती
रंगहीन एक रंग मे सातो रंग छुपे है
अपनी पसन्द का कोई रंग कयों नही चुनती
इक खवाब टूटने से ना कर नींद से नफरत
नई नींद मे नया ख्वाब कोई क्यों नही बुनती
कब से तुझे समझ रहा हूँ जिन्दगी का राज
जाने खुदा तूँ बात मेरी क्यों नही सुनती
खुद खत्म हो किया खत्म गर यादो का सिलसिला
जो तुझ को याद करते है सोच उनको क्या मिला