आज मीठी धूप को अंगना से
नज़र झुकाए गुजरते देखा..
अलसाये मौसम की आँखों में
बेशुमार इश्क उमडते देखा
पीले फूलों की क्यारियों को
प्रेम गीत, गुनगुनाते सुना
भंवरा बेचारा भर रहा
आहे...शायद वो अकेला पड़ा
उदासी के आलम में भि
हमने ज़िन्दगी को, आज
नए रंग में पसरते देखा......
कीर्ती वैद्य २२ अप्रैल 2008
3 comments:
कीर्ति जी
आप इतने अच्छे तरीके से विचारों के दोनो किनारो को छू लेती है कि क्या कहने
जरा उदाहरण देखिये
मीठी धूप -नजरे झुकाये
अलसाये मौसम -उमडते देखा
पीले फूलों की क्यारियों -भंवरा अकेला
उदासी के आलम -पसरते देखा......
वाकी कमाल किया है
कीर्ति जी
आप इतने अच्छे तरीके से विचारों के दोनो किनारो को छू लेती है कि क्या कहने
जरा उदाहरण देखिये
मीठी धूप -नजरे झुकाये
अलसाये मौसम -उमडते देखा
पीले फूलों की क्यारियों -भंवरा अकेला
उदासी के आलम -पसरते देखा......
वास्तव में कमाल किया है बधाई
thanx krishan ji.....bas ek koshish hai acha likhney ke ...
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