आज ऑफिस से जल्दी जाना है
इक इन्वीटेशन हाथ आया है
अपने इलाके के मुर्दे ने पुकारा है
न्यू इयर साथ मनाना है,
ऐसा कह मुझे पुकारा है
शमशान घाट मुझे जाना है
लगा लिपस्टिक, सज़ा काजल
मुझे भि चमकना है
चूँकि, चुडेलो का ब्यूटी कांटेस्ट भी
आज रात ओर्गानिस हुआ है
जानती हूँ , कमबख्त चुडेले
राख से तन मन साजेंगी
पर मैं सिर्फ लक्मे लगा ही
अपनी जुल्फों को तेल से निलाहा
रेम्प पर ठुमकुंगी.......
२००८ की मिस भूतनी का खिताब
अबकी बार मुझे ही पाना है
कीर्ती वैद्य
अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है.... शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
31 December 2007
नमकीन
हमारी बातो का सिलसिला कभी रुकता नहीं
कभी मिठास का एहसास नज़र आता नहीं
सोचती हूँ क्यों करती हूँ हर बात फिर भी
शायद,नमकीन की आदत तुम संग अब मुझे भी
कीर्ती वैद्य
कभी मिठास का एहसास नज़र आता नहीं
सोचती हूँ क्यों करती हूँ हर बात फिर भी
शायद,नमकीन की आदत तुम संग अब मुझे भी
कीर्ती वैद्य
28 December 2007
सूखे पात
सहजी कुछ यादें बन सूखे पात
उदास मन को दिलाती कुछ याद
किताब से बिखर सुनाती बात
नमकीन बूंदे समेट नम होती आप
सुर्ख फूलों का रही कभी हिस्सा
अब बस बचे यही दिन रात
कीर्ती वैदया
उदास मन को दिलाती कुछ याद
किताब से बिखर सुनाती बात
नमकीन बूंदे समेट नम होती आप
सुर्ख फूलों का रही कभी हिस्सा
अब बस बचे यही दिन रात
कीर्ती वैदया
27 December 2007
खिचडी
सपनो के खिचडी पका
भोर किरनों का दे छोंका
भरी दुपहरी का उबाला
साँझ हवा का मसाला
इंद्रधनुषी रंगो से सज़ा
निहार रही तुम्की रहा
कीर्ती वैद्य
भोर किरनों का दे छोंका
भरी दुपहरी का उबाला
साँझ हवा का मसाला
इंद्रधनुषी रंगो से सज़ा
निहार रही तुम्की रहा
कीर्ती वैद्य
26 December 2007
कया लोगी.........
शायरी छोडो, तुम शायरा बन जाउगी
तों आप घर बसाए, मैं घरवाली बन जाउगी.......
घरवाली बन, मेरा भेजा खा जाउगी
नही, बस आपकी आज़ादी बांधुंगी
अरे , उड़ने दो मुझे बन आजाद पंछी
रोका कब, बस मेरा हाथ थामे चलना
उफ़, तुम पीछा छोड़ने का कया लोगी
बस, रोजाना खामोशी से शायरी सुनो
याही चाहूंगी...और कया.....
कीर्ती वैदया.
तों आप घर बसाए, मैं घरवाली बन जाउगी.......
घरवाली बन, मेरा भेजा खा जाउगी
नही, बस आपकी आज़ादी बांधुंगी
अरे , उड़ने दो मुझे बन आजाद पंछी
रोका कब, बस मेरा हाथ थामे चलना
उफ़, तुम पीछा छोड़ने का कया लोगी
बस, रोजाना खामोशी से शायरी सुनो
याही चाहूंगी...और कया.....
कीर्ती वैदया.
24 December 2007
जब, तुम हमसे रुठोगे
कितने अधूरे सपने टूटेंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे
गुनगुनाना मेरा बंधेगा
जब, तुम हमसे कटोगे
तुम तो हर बार मनाते हो
पर जब, तुम हमसे रूठे
हम कया तुम्हे मना पाएंगे..
तुम्हे फिर अपने प्रेम में रंग पाएंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे
कीर्ती वैदया
जब, तुम हमसे रुठोगे
गुनगुनाना मेरा बंधेगा
जब, तुम हमसे कटोगे
तुम तो हर बार मनाते हो
पर जब, तुम हमसे रूठे
हम कया तुम्हे मना पाएंगे..
तुम्हे फिर अपने प्रेम में रंग पाएंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे
कीर्ती वैदया
19 December 2007
क़ैद
कई दिन बाद कमरे में आना हुआ सब सहजा,
जैसे कुछ बदला ही ना
वही कुर्सी व छनी धूप के कण
मंद हवा से उड़ते फैले सूखे पत्ते
धूल चढी हंसती तस्वीरो का रंग सब धुंधला था,
कुछ शेष था, गूंजती कानो में पुरानी बाते
क़ैद जो मेरी स्मृति में ना कीसी कमरे में....
कीर्ती वैद्य
18 December 2007
कुछ ऐसे ही...
13 December 2007
जानती हूँ, जवाब.....
इक आख़री चीठा उन्हे आज लिखा है
आर नहीं तो पार होने का संदेसा दिया है
जानती हूँ, जवाब.....
सारे दिए आप बुझा दिए है
अपने दिल को समझा लिया है
जानती हूँ, जवाब.....
तभी तो अपने को जाम में डुबो दिया है
हर लम्हे को आँसुओ से धो दिया है
जानती हूँ, जवाब.....
हर याद को धुएं में उडा दिया है
हर ज़ख्म को दुनिया से छुपा लिया है
जानती हूँ, जवाब.....
अपनी राह को बदल दिया है
अपने वजूद को ही ख़तम कर दिया है
जानती हूँ, जवाब.....
कीर्ती वैद्य
आर नहीं तो पार होने का संदेसा दिया है
जानती हूँ, जवाब.....
सारे दिए आप बुझा दिए है
अपने दिल को समझा लिया है
जानती हूँ, जवाब.....
तभी तो अपने को जाम में डुबो दिया है
हर लम्हे को आँसुओ से धो दिया है
जानती हूँ, जवाब.....
हर याद को धुएं में उडा दिया है
हर ज़ख्म को दुनिया से छुपा लिया है
जानती हूँ, जवाब.....
अपनी राह को बदल दिया है
अपने वजूद को ही ख़तम कर दिया है
जानती हूँ, जवाब.....
कीर्ती वैद्य
11 December 2007
आँखों का बाँध
न आया करो मेरे पास
मैं क्यों और कौन
कया रखा मेरे पास
चले जाओ यंहा से
बस छाया घुप अँधेरा
न कोई बस्ती न हस्ती
न कोई किनारा यंहा
मत आया करो, भर
नैनो का कटोरा
नहीं मिलती प्रेम भीख
मुझे बहलाने से भी
चले जाओ वर्ना
टूट न जाये मेरे
आँखों का बाँध
कीर्ती वैद्य
मैं क्यों और कौन
कया रखा मेरे पास
चले जाओ यंहा से
बस छाया घुप अँधेरा
न कोई बस्ती न हस्ती
न कोई किनारा यंहा
मत आया करो, भर
नैनो का कटोरा
नहीं मिलती प्रेम भीख
मुझे बहलाने से भी
चले जाओ वर्ना
टूट न जाये मेरे
आँखों का बाँध
कीर्ती वैद्य
अलविदा
हर पल कटे तेरा नाम लेके
दिल नाचे तेरी बात सुनके
पर अब न चलेंगी हवाए ऐसे
न रहेंगी मुलाकाते अब वैसी
कह दिया अब हमने तुमको
अलविदा अपनी धडकनों से भी...
कीर्ती वैद्य
दिल नाचे तेरी बात सुनके
पर अब न चलेंगी हवाए ऐसे
न रहेंगी मुलाकाते अब वैसी
कह दिया अब हमने तुमको
अलविदा अपनी धडकनों से भी...
कीर्ती वैद्य
7 December 2007
पहचान
मेरी तुमसे और तुमसे मेरी
पहचान कया है ?
किस रिश्ते को
दोनों दूर होकर भी
निभाते है?
धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है
मेरे-तेरे बीच बस
इक मन का तार है..
कीर्ती वैद्य
पहचान कया है ?
किस रिश्ते को
दोनों दूर होकर भी
निभाते है?
धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है
मेरे-तेरे बीच बस
इक मन का तार है..
कीर्ती वैद्य
रिश्ते
सुना था, रिश्ते अजीब होते है
कुछ उलझे कुछ नासम्झे
कभी बनते कभी बंटते
कभी इस डाल कभी
उस डाल झूलते रिश्ते
मैं इक बेपरवाह
कब यह समझी
प्यार के डोर में बंधी
उड़ती रही बन हवा
सोचा कब...
कट जाउंगी इस तरह
उलझ रह जाउंगी
रिश्तो के जाल में इस तरह
कीर्ती वैद्य
कुछ उलझे कुछ नासम्झे
कभी बनते कभी बंटते
कभी इस डाल कभी
उस डाल झूलते रिश्ते
मैं इक बेपरवाह
कब यह समझी
प्यार के डोर में बंधी
उड़ती रही बन हवा
सोचा कब...
कट जाउंगी इस तरह
उलझ रह जाउंगी
रिश्तो के जाल में इस तरह
कीर्ती वैद्य
6 December 2007
निशान
गीली रेत पे पायो के निशान
हाँ, मिट जायंगे,
सागर की इक लहर के संग
पर उन चिह्नों का क्या?
जो दिल पे छाए, बन अंधेर साये
नही मिटते अशरुओ के संग
ओर गहरे हो, ड़सते सारी रात
क्या है कोई ऐसा सागर
जो मिटा दे ये निशान...
कीर्ती वैद्य....
हाँ, मिट जायंगे,
सागर की इक लहर के संग
पर उन चिह्नों का क्या?
जो दिल पे छाए, बन अंधेर साये
नही मिटते अशरुओ के संग
ओर गहरे हो, ड़सते सारी रात
क्या है कोई ऐसा सागर
जो मिटा दे ये निशान...
कीर्ती वैद्य....
5 December 2007
"बदला इंसान"
सच के तस्वीर जो बालपन में रही
इक सचाई, मासूम चेहरे पे छायी
खा गया उसे ज़िन्दगी का ज़हर
बन गया इंसान झूठ का पहाड़
कितने भी हंसी के मोखोटे लगाये
दिख रहा बदल गया इंसान...
कीर्ती वैद्य...
खा गया उसे ज़िन्दगी का ज़हर
बन गया इंसान झूठ का पहाड़
कितने भी हंसी के मोखोटे लगाये
दिख रहा बदल गया इंसान...
कीर्ती वैद्य...
4 December 2007
कहानियो का संसार
कहानियो का अंधाधुंध संसार
डूबता उनमे एकाध बेकरार
बस समझे वही इसका अधार
कितना विशाल सरोबार
लगा लो डुबकी एक बार
जान लोगे क्या यह संसार
डूबता उनमे एकाध बेकरार
बस समझे वही इसका अधार
कितना विशाल सरोबार
लगा लो डुबकी एक बार
जान लोगे क्या यह संसार
कीर्ती वैद्य.....
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