ज़िन्दगी के पन्ने, बिन पूछे भरे मिले
बस अपना-अपना किरदार निभाना होता है
उसके अनुसार अपने को ढालना पड़ता है
कभी मस्त- कभी बेकार लगे रोज़ का नाटक
क्यों नहीं कोई फाड़ देता इन पन्नों को
या फिर ख़त्म हो अपना किरदार, यंहा पर
बस अपना-अपना किरदार निभाना होता है
उसके अनुसार अपने को ढालना पड़ता है
कभी मस्त- कभी बेकार लगे रोज़ का नाटक
क्यों नहीं कोई फाड़ देता इन पन्नों को
या फिर ख़त्म हो अपना किरदार, यंहा पर
कीर्ती वैदया.............
3 comments:
ज़िन्दगी रंगमंच है कीर्ति जी, हम सबको अपना किरदार निभाना ही है।
सबकुछ पहले से लिखा होता है प्लैंड होता है...आपने सही कहा हमें बस अपना अपना किरदार निभाना होता है...
accha hai|
sundar khyaal
avaneesh
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