कुछ उमड़ता घुम्ड़ता आया
खोल पट, छुआ शीतल स्पर्श
इक मधुर स्वर गुंजन,
किसी अभिलाषा का स्पंदन
गगरी से छलकी नमकीन बूंदे
भर आँचल, चुगती तारे
जोड़ यादे, पिघलती राते
खींच बादल, कुम्हलाती बाते.........
कीर्ती वैद्य
खोल पट, छुआ शीतल स्पर्श
इक मधुर स्वर गुंजन,
किसी अभिलाषा का स्पंदन
गगरी से छलकी नमकीन बूंदे
भर आँचल, चुगती तारे
जोड़ यादे, पिघलती राते
खींच बादल, कुम्हलाती बाते.........
कीर्ती वैद्य
1 comment:
शब्दों का ताना-बाना बढ़िया बुना है।
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