आस पास टूट फुट हो,
तो हाथो में समेट लूँ
मन भर कर अफ़सोस
फ़िरे बहार फेंक भि दूँ
पर आज कया करूं?
दिल अपना टूटा सा है,
इन फ़ैली भावनाओ को
सुलझाऊ तो केसे?
बिखरी बिखरी बातो को
बताऊँ भि तो किसे ?
अजीब होते है बंधन
निभाऊ भि तो केसे?
कुछ ऐसे ही ...
ढेरों सवालो का अम्बार
बरसाऊ भि तो किस पे?
कीर्ती वैद्य.....
तो हाथो में समेट लूँ
मन भर कर अफ़सोस
फ़िरे बहार फेंक भि दूँ
पर आज कया करूं?
दिल अपना टूटा सा है,
इन फ़ैली भावनाओ को
सुलझाऊ तो केसे?
बिखरी बिखरी बातो को
बताऊँ भि तो किसे ?
अजीब होते है बंधन
निभाऊ भि तो केसे?
कुछ ऐसे ही ...
ढेरों सवालो का अम्बार
बरसाऊ भि तो किस पे?
कीर्ती वैद्य.....
1 comment:
जीवन इसे ही कहते हैं\बहुत सुन्दर।
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