कुछ नमकीन बूंदे, तो थी,
फिर भि पिघला गयी,
बावरे मन को.............
बातो का जाल ही तो था,
फिर भि बाँध गयी,
जोगी मन कों.............
स्नेह की डोर ही थी,
फिर भि जोड़ गयी,
टूटे मन कों............
स्पर्श मात्र धडकनों का था,
फिर भि बहा गया,
निर्गुण मन कों..............
कीर्ती वैद्य....
3 comments:
baha gayi nirmun man ko bahut khub keerti,man ke bhav aur rang bikhare hai.
स्पर्श मात्र धडकनों का था,
फिर भी बहा गया,
निर्गुण मन को...
निर्गुण मन का बहाव, अच्छा सोचना है।
Ek baar fir , kavyatmak abhivyakti kaa wahi dilkash andaaz. Fir se badhaayee...
p k kush 'tanha'
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