26 February 2008

"काश मिल पाती"

जिस बेबाकी से बाते करती हूँ
काश उतनी बेबाकी से मिल पाती
शाम ढले, काले अम्बर फैले
तारो को हाथो से चुन पाती
भर सतरंगी आँचल अपना
प्रेम तुम पर बरसा पाती
अनकही वो सब बातो का
काश, सारा हिसाब ले पाती
सूनी बैरंग शामो को
तुम संग गुलाबी बना पाती

कीर्ती वैद्य.....

4 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

Anonymous said...

bahut sundar

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

अनकही वो सब बातो का
काश, सारा हिसाब ले पाती
सूनी बैरंग शामो को
तुम संग गुलाबी बना पाती

excellent again ...
p k kush 'tanha'

अजय कुमार झा said...

keerti jee,
sab kuch sambhav hai aap aage to badhein. kavitaa achhe hai. likhtee rahein.