जिस बेबाकी से बाते करती हूँ
काश उतनी बेबाकी से मिल पाती
शाम ढले, काले अम्बर फैले
तारो को हाथो से चुन पाती
भर सतरंगी आँचल अपना
प्रेम तुम पर बरसा पाती
अनकही वो सब बातो का
काश, सारा हिसाब ले पाती
सूनी बैरंग शामो को
तुम संग गुलाबी बना पाती
कीर्ती वैद्य.....
4 comments:
बहुत बढिया!!
bahut sundar
अनकही वो सब बातो का
काश, सारा हिसाब ले पाती
सूनी बैरंग शामो को
तुम संग गुलाबी बना पाती
excellent again ...
p k kush 'tanha'
keerti jee,
sab kuch sambhav hai aap aage to badhein. kavitaa achhe hai. likhtee rahein.
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