ऐ रंगरेज .....
सब रंग हैं न तेरे पास .......
भर दो पीत मेरे बचपन को
बाबुल के संग जब मैं रहती हूँ
इठलाती इत उत जब फिरती हूँ
रोती माँ है मैं जब गिरती हूँ
फिर बाबु जी की गोदी होती हूँ
ऐ रंगरेज .....
भर दो नील मेरे अल्हर्पण को
जब मैं तितली सी उड़ती हूँ
ले बलाएँ दादी कहती है
कैसी सुंदर नील परी हूँ
ऐ रंगरेज .....
भर दो गुलाबी मेरे यौवन को
जब मैं यादों का पनघट हूँ
टूटे फूटे सपनों का अम्बर हूँ
धुंधली भूली टूटी खंडहर हूँ
ऐ रंगरेज .....
हर लो न यह कला रंग
मैं फिर जीना चाहती हूँ
वह बचपन के छोटे मोटे पल
जब दुनिया अच्छी है मैं भोली हूँ .....
ऐ रंगरेज .....
दे दो न मुझको यह हरा रंग
बोलो न .....
क्या दोगे मुझको अपना इन्द्रधनुष ...
ऐ रंगरेज .....
कीर्ती वैद्य
अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है.... शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
11 February 2008
ऐ रंगरेज .....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
bahut badhiya hai keerti,rangrezse sare rang mang lena,pura indradhanush,beautiful touching words.
Post a Comment