अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
28 June 2007
" यहरात "
बड़ी गहरी है यह रात दुरो तक कोई नही बस में और काली यह रात दूर कभी टीम्टीमाये दिखे लो पल भर देय आस फीर खा जाये भूकी यह रात बड़ा गहरा अँधेरा और खोमोश यह रात डूब ना जाऊ कंही डराती यह रात चीखू में जब कभी मुझपे हंसती यह रात
No comments:
Post a Comment