अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
29 June 2007
"नही बोलना"
जाओ नही बोलना तुमसे जब देखो पायर जताते कभी जब में जताती सन्यासी बनते अब में रूठी तो पीछे काहे तुम चले आए
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