“मिट्टि”
पानि को कभि बहते देखा है,शान्त् नीर्मल् शीतल्बीना रुके वोह् चल्ति हैतुफ़ान् पहाड् रुकवाट्बीना थमे वोह् चल्ति है, कीनारे कि मिट्टि को भी व्हा ले जाति है…..ज़ीन्दगी भि तो ऐसी ही हैबीना सोचे थके रुके चल्ती हैबस् रुक् तो हम् जाते हैआप्ने ही गम् से अप्नी परेशानियो सेआप्ने हे उल्झ्नो से अप्ने ही दायरौ सेफीर् भि कीर्ती बह्ना पर्ता हैज़ीन्दगी के तोफ़ान् मै ज़िन्डगि के बहव् मैशयाद् त्भी इन्सान् मिट्टि है….ईट्स् माइन्…कीर्ती वैद्या
No comments:
Post a Comment