अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
31 January 2008
सुबह
दरख्तों पर बैठी कोयल
जब कूकती है .... तो लगता है मानों ... आम्र वाटिका मैं मंजरों की खुशबू है मदमस्त मन जब पुलकित सा होता है तभी ...... नींद खुल जाती है !!
1 comment:
bautiful expression,mithi nindh se jaga diya.
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