अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
16 January 2008
चले गए...
हाँ, आज तुम आये फिर इक बार मिले दुआ-सलाम कर फिर नासमझ बन गए मुझे तनहा छोड फिर आज चले गए बिन समझे जसबात फिर रूला चले गए
कीर्ती वैद्य
1 comment:
Anonymous
said...
yahi jevan hai,wo aakar chala jata hai ankahe,aur hum karte hai bas intazar
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yahi jevan hai,wo aakar chala jata hai ankahe,aur hum karte hai bas intazar
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