क्यों अस्मा को छुए, वो तरंगे
जो सिमटी मेरी हथलियो में...
क्यों नेनो के सागर में तेरे, वो सपने
जो कैद मेरे दिल में...
क्यों भागे मन, तुम्हारे पीछे
जो बस जुडे ख्याल बन मेरे...
क्यों चुगु सपने, तुमसे जुडे
जो कभी नहीं तेरे-मेरे...
क्यों सजाऊ, रेत के घरोंदे
जो ना कभी हमारा बेसेरा.....
कीर्ती वैद्य..
3 comments:
बहुत खूब जी !!
end ka mod bahut aachha diya hai keerti,bahut bahut sundar.
क्यो सजाऊ रेत......सुन्दर रचना
विक्रम
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