26 November 2007

बादलों के पार

बादलों के पार
इक ओर जहां
लेकर जाना, तुझे
अपने संग वहाँ
छुए रौशनी,
जलाये अब,
देखे दुनीया,
सुनाये अब,
बस बाते हो,
अपने दील की
कुछ राते हो
अपने सुकून की.....

कीरती वैधया

1 comment:

डाॅ रामजी गिरि said...

कीर्ति.. एक बार एक flight में मेरे मन में ठीक ऐसे ही विचार आये थे.. आपने बखूबी उसे उतारा है शब्दों में.