30 April 2009

शायद मिले फिर वे

काली उलझी सड़क पे
पक्के सुलझे संवाद थे
धूप - उषण में जले
प्यासे पिघले ख्वाब थे
हवाओ के तूफ़ान में
मन के भीगे भावः थे
शायद मिले फिर वे
सागर सीने में तूफ़ान थे......

कीर्ती वैद्या..... 25th april 2009

कहना तो अब भी बहुत है....

वो जला भुझा टुकडा
मुझे घुर रहा था
सब कुछ जल जाने के बाद भी
मासूम बेजुबान मेज पर पड़ा था
पता नहीं हँसू की रोऊँ, तुम्हारी
आँखों की याद दिला रहा था
कहना तो अब भी बहुत है, पर अब
खामोशियों का शहर आबाद था.....

कीर्ती वैद्या ... 27 april 2009

25 April 2009

लव सीन

लव सीन बिखरते ही
आंसू टपकते ही....
यारो, इक कश भर लिया
और कुछ तो सूझा नहीं
ढेरो, बेमाना सामान खरीद लिया
उदास मुखड़े की सिलवटो को
विदेशी दारू की बोतल से धो दिया...
अगर अब भी, हम रोते नज़र आये
तो सच समझे ....
हम अपनी ज़िन्दगी को पीछे छोड़े आये

कीर्ती वैदया 24TH APRIL 2009

13 April 2009

इल्जाम

वो टूटे कांच के ग्लास, ना मेरे थे
और ना वो खाली बोतले मेरी...
बस मैंने तो उन्हे, यूँही
होंठो से छू...गले से लगया था...
प्यासे तो दोनों ही थे....
फिर भी सब टूटने का इल्जाम
यूँही मुझपे लगा....
बदनाम भी मै ही रही .. आँसूं भी मेरे ही रहे...

कीर्ती वैद्या ...10 april 2009

9 April 2009

उम्मीद तो नहीं...

ढ़ाक से झरते सुखी पत्तो सी
इत्-उत् डोलती...मन-मर्ज़ी की
शायद, अच्छी मस्त हूं, अकले ही
उम्मीद तो नहीं...
किसी को पाने-खोने की....
फिर.. शायद हो सकता है,
दोबारा जीने की....

कीर्ती वैद्या .... 09th april 2009