17 June 2008

आसमां का सिंदूरी रंग ....

हाँ, उस शाम मिलूँगी,
जब थक फीका सूरज,
सागर के आगोश में
उतर रहा होगा
तब ....
लहरों में अब सी बेचैनिया नहीं
हाँ, शिकन की रेखाए जरुर होंगी
टूटे घरोंदे की रेत
नए मुसाफिरों की
राह तक रही होगी
शायद ... फ़िर ... तब
मैं तुम्हे मिलूं
इक बार फिर
पुरानी जिद्द करूं
अबके दिलवा दो
वो आसमां का सिंदूरी रंग ....

कीर्ती वैद्य .....16 june 2008

12 June 2008

रंग

रंगो के गुच्छे
हरदम संग रहे
कुछ पलकों तले
कुछ मुट्ठी धरे
कुछ चलते चलते
चुगु भूरी ज़मी से
कुछ तोड लाऊं
अलसाए आसमां से
कभी टकरा जाए
सागर के सीप में
कभी नदिया की
जलातारंगो में
कभी आहट दे
पंछीयो के करलव में

जानते हो क्यों .....

सब रंग चुरा
सजाया अपना
इक आशिया
तुम्हे रखूंगी
अपने पास
बस वंहा
अपने प्यार के
सब रंग
सह्जुंगी वंहा .........

कीर्ती वैद्य ..... १२ .जून .२००८

9 June 2008

सोच

सोच....बहुत हद तक ले डूबे

कभी ....
मन के अंधियारे गलियारों के
अनजान रास्तों के फेरे काटे

कभी ....

निर्झर झरने के नीर सी भागती जाए
राह की चट्टानों से टकरा, छलक जाए

कभी....
नील अम्बर को बन पतंग छुना चाहे
कटने के डर से धरा का रुख कर जाए

कभी ......
नटनी बन सुतली पर कलाबाजी खाए
चोट के भय से बच्चों सी तड़प जाए

हाँ, इक सोच ना जाने कितने आसमां दिखाए

कीर्ती वैद्य .......09 june 2008

7 June 2008

तन्हायिया




रेशा-रेशा डूबा अपनी ज़िन्दगी का
कमबख्त, तेरी बर्फ जैसी बातों से
रोते है, तो अब आंसू भी नही गिरते
पथराई, इन सुखी- फूटी आँखों से
कोरे कागज़ भी अब हमसे उब गए
इस बेबस दिल की लिखी बातो से
थक बैठ गयी, यह बेरंग ज़िन्दगी
रुखे फीके बेहाल एहसासों तले
बस .... अब सन्नाटो में बाते करे
हम....बस अपनी तन्हायियो से ...........

कीर्ती वैद्य .....16 may '2008

6 June 2008

अकेले

खुश हूँ .... अकेले ही
यादे कुछ अब भी
उनकी, मेरे .... संग है
हर सुबह बन ताज़ी फिज़ा
जिस्म में ..... उतर जाए
चाय के ठंडे प्याले में
तुम्हारी गर्माहट .... घुल जाए
दौडते-भागते बेबस शहरी भीड़ में
बाते तुम्हारी ..... महफूज़ कर जाए
सांझ के चाँद से पूछ हाल तुम्हारा
क्यों तुम दूर ...... हम लड़ जाए
तकिये तले छुपा सब खाब्वो को
तुम्हारे अरमान ....ओढ़ सो जाए
नहीं कहते कभी किसी से
हम बस .....तुम्हे याद कर
हर दिन यूँही अकेले जिये जाए ...
कीर्ती वैद्य .....01 june 2008