28 November 2007

मेरा ही रहे

एक चाँद की सहेली
मेरी भी सहेली
बड़ी इठ्लाये पीया पे
छमक-छमक देखो
ज़लाये-चिडाये
इक दिन पूछा
ऐसा कया उसमे?
लगी इतरा पिरोने
तारीफों की लड़ी
सुन सब, मैंने
अंगूठा दिखलाया
अरी, बड़ा दूर
वो तुझ से
न जाने कितनों
का सजन, तेरा सनम
भला मेरा 'माही'
तेरे चाँद से सही
कितने पास मेरे
दिन -रात, हर
पल संग मेरे
कोई नहीं देखे
मेरे सिवा उसे
बस 'माही' मेरा
मेरा ही रहे
हमेशा के लीए

किर्ती वैदया............

1 comment:

डाॅ रामजी गिरि said...

To Keerti ji...Aap ne 'Mahi' ko chaand bana hi diya.. humey to rashq hai aapki mohabbat se aur 'Mahi' ki kismat se..