22 May 2008

नितिन के लीए....

उस सोच से तुम परे हो
जिस सोच से तुम मेरे हो

तपी तपी गीली पीली धूप तले
मीठे मीठे तेरे कुछ एहसास खड़े

इस पल उस पल ज़िंदगी
बस सब तुम संग ज़िंदगी


होता है होता है....हाँ होता है
राहे जब जुदा ओर मंजिले एक हो

कीर्ती वैद्य

14 May 2008

समझो.....

आस सच्ची
उम्मीद कच्ची

फिर केसे...

पलकों दबे सपने
होंठो से कह पाते

कभी...समझो...

ठंडे जमे बर्फीले
शब्दों की चुभन
खाली
कोरी फीकी
आँखों की चाहत ...

कीर्ती वैद्य ....१४ मई २००८

तुम्हे....लिखूंगी......

तुम्हे....लिखूंगी
इक दिन, पक्का
जब.. शाम उतरेगी
उदास झरोखे में

अभी...

उमस दुपहरी में
अपनी बाहों में
सिमटने जाने दो
मीठे प्यारे
एहसासों को
सुने आँचल में
भर जाने तो दो.....

कीर्ती वैद्य ....१४ मई २००८

12 May 2008

केसे रोक पाती ....

सोचा, पास रख लूँ
अभी यंही...बस
अपने पास रोक लूँ

मन था...
बच्चों सी जिद लिए
शब्द थे ..
भावनाओ से जड़े, निरे गूंगे

फिर केसे सब कह देती
उससे जाने से रोक पाती

रोना......
शायद, जानती नहीं
मरुस्थल में बरसात
कभी देखी है
सब सुखा बंज़र
काँटों से भरा

फिर केसे रोक पाती ....

कीर्ती वैद्य ...... 12 may 2008

8 May 2008

लकीरे

कुछ आढी टेढी लकीरे
पन्ने ख़राब करती

कुछ टेढी मेढ़ी लकीरे
रास्ते बना जाती
कलम खींची लकीरे
कविता कहला जाती
कुछ हाथ की लकीरे
बदनसीबी से नसीबी
नसीब की लकीरे
उम्मीदे बाँध जाती

..........

हाथ की लकीरे
माथे पर शिकन बन
उभर आती है
जब उम्मीद टूट कर
जिन्दगी हाथ से
छूट जाती है......


कीर्ती वैद्य ....२७ मार्च 2008

7 May 2008

स्पर्श ज़िन्दगी का ....

रफ्ता - रफ्ता
बातो की कडिया जुडी
ज़िन्दगी अपना वेग
तेज हवा में ले उडी
जमी पर अब
पाओ कंहा रहे
गीतों की नदिया
जैसे बह चली
परिचय हुआ मात्र
धडकनों की चहातो का
पर स्पर्श जैसे अपना
ज़िन्दगी से हो गया....


कीर्ती वैद्य....1st April 2008

मेरी ज़िन्दगी मिल गयी....

मुझे लिखने की इक वजह मिल गयी
उन्हे गुनगुनाने की अब आदत हो गयी
ज़िन्दगी अब अपनी सुन्हेरी हो गयी
सुबह भी अब अपनी सतरंगी हो गयी
राते भी अब अपन खुशनुमा हो गयी
मुस्कुराने की इक वजह मिल गयी
सजने संवरने की इक तरंग जग गयी
सच, मुझे मेरी ज़िन्दगी मिल गयी

कीर्ती वैद्य ... १७ मार्च 2008

5 May 2008

बस, अब लौट आयो

भोर के दिए
लाल मीठे गुलाब
देखो...
मुरझा
गए
बस, अब लौट आयो...

सावन फिर गया
सुनो...
नहीं भीगना
अब दोबारा
बस, अब लौट आयो...

सज़ा गए, गीली
मेहंदी हथेली
वो...
कबकी सुख
मुरझा झर गयी
बस, अब लौट आयो...

अंगना वही, जो
महकता जो तेरे
गीत गुंजन से
सोच...
तप रहा
अलसाई धूप आँचल तले
बस, अब लौट आयो

काजल की सारी नमी
उतर आयी नयनो में
देखो ना
सांझ हो गयी
बस, अब लौट आयो

कीर्ती वैद्य... ०२ मई २००८

3 May 2008

अनकही कहानी .....

रात की बारिश से
भीगा ...व्यथित शहर
नम.. उमस.. उदास
बेमन बाहें फैला
फिर,
ज़िन्दगी के नए
पन्ने को
आगोश में ले
लिख रहा,
फिर, इक नई
अनकही कहानी .....

कीर्ती वैद्य ०२ मई २००८

2 May 2008

सब ढल गया....

गुमसुम नदी की पलके कुछ
हवा की चुभन से नम थी
उदास पीला सूरज मुरझा
काले बदलो में छुप गया
शाम ओढ़ सय्हा चादर
नदी को बाहों में छुपा
सब ढल गया अब
समझा रहा था......

कीर्ती वैद्य ०१ मई २००८