30 November 2007

अपने प्यार की रस्म

बैठे रहो मेरे पास
ना जाओ कंही आज
इन आखरी पलो का साथ
तुम्हारी सांसो का एहसास
जी लेने दो अपना यह प्यार
फिर बिखर जायगी,इक काली रात
ना छोडो मेरा हाथ
कुछ पल बाद आप छुट जाएगा साथ
बह जाने दो अपने ज़सबातो को
फिर कौन सुनेगा, मेरे जाने के बाद
ऐसे ना छुपाओ अपनी भीगी पालकी
ना पौछेंगा कोई, मेरे बाद
देखो उस चाँद को, वो सब जानता है
कैसे हममे जुदा होते, तक रहा है
जब आयेगी तुम्हे मेरी याद
तुम भी ऐसे ही चाँद को तकना
मैं काले अम्बर पर भागती आऊंगी
हवा बन तुमसे लिपट जाउंगी
अपने प्यार की रस्म मरकर भी निभाउंगी...................

कीर्ती वैदया...

ज़िंदगी का इक दिन

इक अनछुआ पहलू पास रहे
आँख मिचते अक्स में बदले
अन्बुझे सवालो का अंबार लगा
जाने कंहा धुयां हो जाए
क्या उनके जवाब
उनमे ही मन घुल जाए
अपनी ही परछाइयो से
आप ही डर जाए
ज़िंदगी का इक दिन
कुछ ऐसे ही बीत जाए...


कीर्ती वैदया...

29 November 2007

फिर पीयेंगे

सुबह - सुबह
दोस्त का फ़ोन
क्या मुसीबत है
अभी क्या काम
हम तों शाम
को मिलते है
क्या इसका नशा
अभी उतरा नही?
हाँ, बोलो....

सुनो मेरी बात ,
बुरा मनाना
अपनी दोस्ती
पे आंच लाना
सारी रात
सो पाया
इक शादीशुदा,
बच्ची का बाप
फीर भी जाने
क्यों तुमसे
दिल लगा बैठा
इक दोस्त से
बढ तुम्हे
अपनी प्रेमीका
मान बैठा
हो सके तों
माफ़ी देना.....

अरे, ये क्या
कहते हो
मेरे दिल मैं
तों ऐसा
कुछ नही
छोडो फालतू
की बाते
शाम को
संग बैठ
फिर पीयेंगे
जाम.........

कीर्ती वैद्या

28 November 2007

भीगे नैन अब........

माँगा था 'रब' से
मिला न कभी तब
आस भी छुटी सब
तक-तक हारी जब
बुझ गए दीप
तों खडे अब
भीगे नैन अब........

कीर्ती वैदया.....

एहसास क्यूँ रहे.....

हरी झील आँखों का रंग
क्यूँ रोज़ करे तंग

सुर्ख होंठो की लाली
क्यूँ जलाती रात भर

खनकती चुडियो का रंग
बरसाए नैन सारी रैन

हाँ, वो अब साथ नही
फिर, एहसास क्यूँ रहे.....

कीर्ती वैदया

मेरा ही रहे

एक चाँद की सहेली
मेरी भी सहेली
बड़ी इठ्लाये पीया पे
छमक-छमक देखो
ज़लाये-चिडाये
इक दिन पूछा
ऐसा कया उसमे?
लगी इतरा पिरोने
तारीफों की लड़ी
सुन सब, मैंने
अंगूठा दिखलाया
अरी, बड़ा दूर
वो तुझ से
न जाने कितनों
का सजन, तेरा सनम
भला मेरा 'माही'
तेरे चाँद से सही
कितने पास मेरे
दिन -रात, हर
पल संग मेरे
कोई नहीं देखे
मेरे सिवा उसे
बस 'माही' मेरा
मेरा ही रहे
हमेशा के लीए

किर्ती वैदया............

रोज़ बहाना बन

हाँ, तुम रोज़ याद आते हो
आँख खुले पास खडे होते हो
सात समुंदर पार गए हो
फीर भी, मुझे याद रखते हो
सुनु, क्यों नहीं सोते तुम
जब सूरज नीकले यहॉ
तुम रात अपनी क्यों जलाते
सारी रात जग बात करो तब
जब रात पसरे मेरे यहाँ
सपनो में चले आते हो तब
'कीरू' को इतना क्यों चहाते हो
उसे क्यों इतना सताते हों
जब रहना ही अलग हमे
तो क्यों रोज़ बहाना बन
मिलने भागे आते हों........

कीर्ती वैदया...

27 November 2007

प्यार कया चीज

प्यार कया चीज़?
कभी हंसाये
कभी रुलाये
मीयां, पर तुमहारा
यहाँ कया काम?
ये कोई बाज़ार
बीके यंहा प्यार
मोल-भाव में तोल
करो अपमान
रहने दो पाक.

कीर्ती वैदया....

नन्हा सपना

आँख का अंधेर गलियारा
इक रोता नन्हा सपना
सूर्ये कीरण छुए
रात चांदनी
हंसा पाए
कई दीन का भूखा
सुस्त चाल लीए
खामोश धड़कन
भी रो जाए
दस्तक सुन, आस लीए
इक सांस में, हंस जाये
पा, फीर मुरझाये
गुमनाम, फीर
जीए
चला जाये.....

कीर्ती वैदया..

याद है, तुमहें......


जाड की बेरंगी शाम
दौडते शहर की सड़क
चुपी की चादर ओढ
घंटो मेरा इंतज़ार

याद है, तुमहें......

मोल-तोल के पीछे
ठेलेवाले से बहस
मेरे हंस जाने पर
आप ही झेंपना

याद है, तुमहें......

वो शाम बीते
कई बरस होए
स्मृतीपटल के
चीत्र, शेष अब

हाँ, अब कंहा याद, तुमहें......

मैं रही
ये भी होंगे
शेष कभी..

कीर्ती वैदया..

ऐसा कोई रंग है?

कैसा रंग चिहए ?
पुछा जब रंगरेज ने...

खो गयी खड़ी-खड़ी
बीसरी फीकी यादो में
काश, रंग पाती
अपनी बेरंगी यादो को
फीर एक बार खील
चहक नाच पाती
बाबुल के अंगना

सुनो रंगरेज..
ऐसा कोई रंग है ?

कीर्ती वैदया......

26 November 2007

बादलों के पार

बादलों के पार
इक ओर जहां
लेकर जाना, तुझे
अपने संग वहाँ
छुए रौशनी,
जलाये अब,
देखे दुनीया,
सुनाये अब,
बस बाते हो,
अपने दील की
कुछ राते हो
अपने सुकून की.....

कीरती वैधया

15 November 2007

PHOTO OF SHAYAR FAMILY.....GETTOGETHER





SHRADHA & MEEEEE..........KASH ASE HE HUM SAB MILTEY RAHEY AUR APNI KAVITAYE BANTTEY REHEY............EK YADGAAR DIN JO HUM SAB NEY MILKAR SAATH BEETAYA....

2 November 2007

यह भी ज़िंदगी ही है...............




खाली रंगो से भी रंगीन हो जाती है ज़िंदगी
नकली मोखोटो में से भी हंस जाती है ज़िंदगी

उन एहसासों का क्या जो खोये दुनीया की भीड़ में
म्रीग मरीचीका पयास का क्या जो भटके इस भीड़ में

आंखो की हजार चाहते, चंद सीको से जगती कीसमते
मद में चूर उड़ता धुयॉ रात भर टकराते जाम के कांच

पर उनका क्या जो ढ़ूंढ़े बस बेमोल प्यार के दो मीठे बोल
बीस्री अपनी ही यादो को भीगोये अपनी ही बूंदों से


कीर्ती वैदया............................................