सोचा, पास रख लूँ
अभी यंही...बस
अपने पास रोक लूँ
मन था...
बच्चों सी जिद लिए
शब्द थे ..
भावनाओ से जड़े, निरे गूंगे
फिर केसे सब कह देती
उससे जाने से रोक पाती
रोना......
शायद, जानती नहीं
मरुस्थल में बरसात
कभी देखी है
सब सुखा बंज़र
काँटों से भरा
फिर केसे रोक पाती ....
कीर्ती वैद्य ...... 12 may 2008
9 comments:
कीर्ति जी
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है। दिल की भावनाओं का अति सुन्दर चित्रण । पढ़कर आनन्द आ गया। बधाई स्वीकारें ।
thanxs shobha ji
भावनाओं का बहुत ही उम्दा चित्रण
thanxs ..aney aur mujhey padhney ka
उम्दा रचना।
hi keerti,
really nice poems, generally i dont read poems wo bhi in hindi par its great...
best of luck dear.
anita
thanx kirti ji,
this is first appriciation for me.
keep reviewing. waiting for furthur evaluative and critical thoughts.
thanx kirti ji,
this is first appriciation for me.
keep reviewing. waiting for furthur evaluative and critical thoughts.
Post a Comment