कुछ आढी टेढी लकीरे
पन्ने ख़राब करती
कुछ टेढी मेढ़ी लकीरे
रास्ते बना जाती
कलम खींची लकीरे
कविता कहला जाती
कुछ हाथ की लकीरे
बदनसीबी से नसीबी
नसीब की लकीरे
उम्मीदे बाँध जाती
..........
हाथ की लकीरे
माथे पर शिकन बन
उभर आती है
जब उम्मीद टूट कर
जिन्दगी हाथ से
छूट जाती है......
कीर्ती वैद्य ....२७ मार्च 2008
6 comments:
बढ़िया भाव.. बधाई
वाह क्या बात है।
नसीब की लकीरे
उम्मीदे बाँध जाती ..........
bahut achhe. उम्मीद बन्धी रहनी चाहिये जैसे भी हो।
अपने इरादो को देख इरादों की तक्दीरों को ना देख
अपने हाथों से काम ले हाथों की लकीरों को ना देख
आपकी कविताएं अच्छी लगीं। अच्छा लिखती हैं आप। कभी हम भी आपकी तरह खूब कविताएं लिखा करते थे, लेकिन अब नहीं हो पाता। शायद विचार ही मर गए हैं हमारे...
sunder kavita
last few lines are beautiful...
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