मुझे लिखने की इक वजह मिल गयी
उन्हे गुनगुनाने की अब आदत हो गयी
ज़िन्दगी अब अपनी सुन्हेरी हो गयी
सुबह भी अब अपनी सतरंगी हो गयी
राते भी अब अपन खुशनुमा हो गयी
मुस्कुराने की इक वजह मिल गयी
सजने संवरने की इक तरंग जग गयी
सच, मुझे मेरी ज़िन्दगी मिल गयी
कीर्ती वैद्य ... १७ मार्च 2008
1 comment:
सुंदर भाव वाली रचना.. बधाई
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